समानान्तर | Samanantar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Samanantar by हंसकुमार तिवारी - Hanskumar Tiwari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हंसकुमार तिवारी - Hanskumar Tiwari

Add Infomation AboutHanskumar Tiwari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| ११ | अगर सुना कि वह्‌ वहो गयी है, तो टॉगं तोड़ दें गा और चल्ला गया । शास को घर आया, तो पत्तों द्वार पर ही मिल गयी, জী मरा ही इन्तजार कर रहीं थी। चेहरे पर नजर पड़ते ही बोल उठी--तुम्दारे घर तो मर जाऊँ, तो खबर भी नदे पाऊं। ओर तो कुछ तुमसे पाने को रहा, अब दुनियाँ भर के लोग घर चढ़कर अपमान भी कर जाने लगे । आाज जाने किसका मुंह देख कर जगा था। सुबह से फजीहत-ही-फजीहत थी । खन्ना साहव से कहा-पुनी, देर मे थक गया, वहाँ भी ल्ञानत-मलामत | अब यहाँ जाने कया हुआ । मैंने पूछा--क््यों, यहाँ कया हुआ ? --यहाँ जो न होना था, सो हुआ। खन्ना साहब खुद दरवाजे पर आकर जो मुंह में आया, कह गय । गरीब की बीवी सबकी भोजाई ! ““खन्ना साहब अकारण क्‍यों कह বাত? লী तो वे जाने मगर सव्र कुछ कह गय ओर बहाना यह्‌ लगाया कि नील्लम क्यातो उनको चुनी की सोने की बाली चुरा लायी है | --नीलम चुरा लायी ह !? “नहीं-नहीं, आज नीलम को मैंने दरवाजे से बाहर पॉब भी नहीं रखने दिया !




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now