भारतीय दर्शन की रुपरेखा | Bharatiya Darshana Ki Rupa Rekha
श्रेणी : इतिहास / History, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.72 MB
कुल पष्ठ :
425
श्रेणी :
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No Information available about बलदेव उपाध्याय - Baldev upadhayay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिषय-प्रवेदा प्र
हैं, वही सद् है । यह कल्पना कभी थी, परन्तु आज विज्ञान इसके आगे बढ़
गया है ओर इसी कारण वह रहस्यवादियों की कल्पनाओं को असत्य मान-
कर तिरस्कार करने के लिए उद्यत नहीं है। उदाहरण के लिए 'काल' की
कल्पना को लीजिये । यह केवल काल्पनिक नहीं है, प्रत्युत्त भोत्तिक विज्ञान
जगत की विभिन्न वस्तुओं की उत्पत्ति के छिए 'काल' की क्रीड़ा को भाज
प्रधान स्थान दे रहा है । पर काल तो स्थूल पदार्थ नहीं है? साधारणतया
जिन पदार्थों को हुम दृदय मानते है, उनके सच्चे स्वरूप की खोज करने पर
वे हृदय नहीं मालूम पड़ते । हमारी चक्षुरिन्द्रिय बाह्य वस्तुओं के साथ जब
सम्पर्क में माती है, तब देखने की क्रिया होती है । पर क्या यह प्रत्यक्ष दर्शन
हुआ ? बाहरी चीजों का प्रतिबिम्ब ही हकपटल ( रेटिना ) के ऊपर पड़ता
है। हम इन प्रतिविम्वों की व्याख्या करते है कि बाहरी चीज हरी-भरी लता
है, छाल फूल है या सफेद कपड़ा है, या अपने सींगों को बराबर घुमाकर लोगों
को भयभीत करनेवाला मभैंसा है । इस प्रकार प्रतिबिम्बों के रूप को समझाने
से बाहरी चीजों के रूप का पता चलता है। इस तरह हमारा यह ज्ञान
अनुमान-जन्य हुआ । मन ही सतु रूप है । उसका ही काम बाहरी जगद् से
नाडीमण्डल के द्वारा लाई गई इन्द्रिय-वासनाओं को समझाना ओर व्याउ्या
करना है। अतः उसका ज्ञान ही दमारे लिए प्रत्यक्ष ज्ञान है, इतर वस्तुओं का
ज्ञान तो मचुमानसाध्य है तथा दूर की चीज है ।
विज्ञान बाहरी जगत के अनुभव को बकेछे पूर्ण रूप से समझा नहीं
सकता, वयोकि उसमें कुछ ऐसे अंक भी है, जो आध्यात्मिक जगतु से संबंध
रखते है। विज्ञान उनकी भी सत्यदा को मानता है और इस प्रकार अपने
अपूर्ण अंश की श्रुटि को पूरा करता है। भौतिक विज्ञान इस जगद् की
उत्पत्ति का वर्णन करते-करते अस्तिम व्याउ्या में केवल सांकेतिक शब्दों पर
ही था जमता हैं. चहु कहता है कि जगत् के सूल में 'वात्ति' ( फोर्स ) काम
कर रही है, पर यह दाक्ति-भी व्या कोई स्थूल पदार्थ है ? जब विद्याल
गगनमण्डल में नक्षयमालिका के रूप तथा बनावट की परीक्षा करने का
अवसर ज्योत्तिविज्ञा के सामने मा उपस्थित होता है, तब उसे आश्चर्य से
सक्त ही हो जाना पड़ता है। माकाश में जितने तारे दिखलाई पहते हैं,
उतने से न जाने कितने गुने अधिक तारामण्डल माकाश में निवास किया
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