देव और उनकी कविता | Dev Aur Unki Kavita
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.48 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जो
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विशाल और घेरदार होता था कि राजदुरबारों में जाते समय कई सेवक उसे
घसिटने से बचाए रखने के लिए उठाए रहते थे । न«
| १ ] देव के अन्थों की संख्या और नाम प्रायः वे ही हैं जो मिश्र-
बन्घुओं ने लवररेन से दिए हैं। फेवल १-श्ज्ार-विलासिनी, र-नखसिख-प्रे मदशेन
और वंद्यक यन्थ-ये तीन नाम और जोड़ दिये गये हैं। [ परन्तु आज कृष्ण-
बिद्दारी जी का मत है कि श'गारविलासिनी देवकृत' यन्थ नहीं है। शिवाष्टक के
विषय मे भी उनकी यही सम्मति है ।
[८] देवजीनेसी उत्तम भाषा मे प्रेम का सन्देश दिया है। हिन्दी
. कवियों में उन्होंने ही सबसे पहले यह मत दृदता-पूर्वक प्रकट किया कि शव गार
रस सब रसों में श्र प्ठ है ।
[६ ] हिन्दी भाषा के कवियों में केशवदास जी प्राचीन झलकार-प्रधान
_ श्रणालीं के कवि थे, तथा देव जी उसके बाद की-रस [ भाव | को स्चस्व सानने
- वाली-प्रणाली के । हर ्
“देव श्र बिहारी का जवाब ला० भगवानदीन ने “बिहारी और देव
मे दिया है । यह पुस्तक देवविषयक, कोइ सूचना हमको नहीं , देती, परन्तु उनके
दोषों--विशेषकर- साषा-सस्बन्धी श्रव्यवस्थाओं के अध्ययन के लिए इसका महत्व
स्वीकृत ,नहीं किया जा सकता । लाला जी की भाषा-विषयक पकड़ अचूक
होती थो और इस दृष्टि से देव के अध्ययन मे हम इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते ।
इस प्रकार वास्तव में देव-विषयक श्रनुसंघान एक तरह से देव और
बिहारी” पर आकर समाप्त हो जाता है । इसके उपरान्त पं० रामचन्द्र शुक्ल और
डा० श्यामसुन्दरदास के -इतिंहासों में देव का प्रासंगिक विवेचन आता है ॥
' शुक्ल जी ने उन्हें श्रत्यन्त दृढता-पूचवक ' सनाद्य घोषित किया है, केवल इस
- झाघार पर कि इटावा प्राय: सनादूयों की बस्ती है 1_ इसके श्रतिरिक्त अन्य तथ्यों
के विषय सें वे या वो मौन हें-या फिर नवरत्न की धारणा को ही उद्छत कर
संतोष-कर लेते हैं । शुक्ल जी देव की प्रतिभा का लोहा मानते हुए भी यह समभकते *
हैं कि देव ने पेचीले मजमन बाँघने में उसका दुरुपयोग किया हे । उन्होंने देव की
तथाकथित सौलिक उद्भावनाशओओं का सप्रमाणं निषेध किया है, और उन्दे आचा-
य्यत्व का श्रेय नहीं दिया । शुक्लजी के कथन में सत्य का झंश स्वीकार करते
हुए भी, यदद तो मानना ही पढेंगा कि उन्होंने देव के झाचारय्य और कवि दोनों
रूपों के साथ अन्याय किया है । रायब्रद्दादुर श्याससुन्दरदास का विवेचन अधिक
सहालुभूति-पूर्ण अतएव संगत है । उन्होंने इटावा मे सनाद्यों की बहुसंख्या
मानते हुए भी देव के विषय में सिश्रबन्घुद्यों के निष्कर्षों को दी ( जो कि माता-
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