देव और उनकी कविता | Dev Aur Unki Kavita

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Dev Aur Unki Kavita by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

Add Infomation About. Dr.Nagendra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जो न न विशाल और घेरदार होता था कि राजदुरबारों में जाते समय कई सेवक उसे घसिटने से बचाए रखने के लिए उठाए रहते थे । न« | १ ] देव के अन्थों की संख्या और नाम प्रायः वे ही हैं जो मिश्र- बन्घुओं ने लवररेन से दिए हैं। फेवल १-श्ज्ार-विलासिनी, र-नखसिख-प्रे मदशेन और वंद्यक यन्थ-ये तीन नाम और जोड़ दिये गये हैं। [ परन्तु आज कृष्ण- बिद्दारी जी का मत है कि श'गारविलासिनी देवकृत' यन्थ नहीं है। शिवाष्टक के विषय मे भी उनकी यही सम्मति है । [८] देवजीनेसी उत्तम भाषा मे प्रेम का सन्देश दिया है। हिन्दी . कवियों में उन्होंने ही सबसे पहले यह मत दृदता-पूर्वक प्रकट किया कि शव गार रस सब रसों में श्र प्ठ है । [६ ] हिन्दी भाषा के कवियों में केशवदास जी प्राचीन झलकार-प्रधान _ श्रणालीं के कवि थे, तथा देव जी उसके बाद की-रस [ भाव | को स्चस्व सानने - वाली-प्रणाली के । हर ्‌ “देव श्र बिहारी का जवाब ला० भगवानदीन ने “बिहारी और देव मे दिया है । यह पुस्तक देवविषयक, कोइ सूचना हमको नहीं , देती, परन्तु उनके दोषों--विशेषकर- साषा-सस्बन्धी श्रव्यवस्थाओं के अध्ययन के लिए इसका महत्व स्वीकृत ,नहीं किया जा सकता । लाला जी की भाषा-विषयक पकड़ अचूक होती थो और इस दृष्टि से देव के अध्ययन मे हम इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते । इस प्रकार वास्तव में देव-विषयक श्रनुसंघान एक तरह से देव और बिहारी” पर आकर समाप्त हो जाता है । इसके उपरान्त पं० रामचन्द्र शुक्ल और डा० श्यामसुन्दरदास के -इतिंहासों में देव का प्रासंगिक विवेचन आता है ॥ ' शुक्ल जी ने उन्हें श्रत्यन्त दृढता-पूचवक ' सनाद्य घोषित किया है, केवल इस - झाघार पर कि इटावा प्राय: सनादूयों की बस्ती है 1_ इसके श्रतिरिक्त अन्य तथ्यों के विषय सें वे या वो मौन हें-या फिर नवरत्न की धारणा को ही उद्छत कर संतोष-कर लेते हैं । शुक्ल जी देव की प्रतिभा का लोहा मानते हुए भी यह समभकते * हैं कि देव ने पेचीले मजमन बाँघने में उसका दुरुपयोग किया हे । उन्होंने देव की तथाकथित सौलिक उद्भावनाशओओं का सप्रमाणं निषेध किया है, और उन्दे आचा- य्यत्व का श्रेय नहीं दिया । शुक्लजी के कथन में सत्य का झंश स्वीकार करते हुए भी, यदद तो मानना ही पढेंगा कि उन्होंने देव के झाचारय्य और कवि दोनों रूपों के साथ अन्याय किया है । रायब्रद्दादुर श्याससुन्दरदास का विवेचन अधिक सहालुभूति-पूर्ण अतएव संगत है । उन्होंने इटावा मे सनाद्यों की बहुसंख्या मानते हुए भी देव के विषय में सिश्रबन्घुद्यों के निष्कर्षों को दी ( जो कि माता-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now