देव और उनकी कविता | Dev Aur Unaki Kavita

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Dev Aur Unaki Kavita by डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न रन-मपदयाम इ-मवानीविलास बनसुन्दरी-मिदूर दे-सुजानचिहोद नये मन्तरगा 3-रागरत्तारुर स-कुशलविलास ६-देवचरित्र १०-प सचन्द्िका १५-जातिधिलास १२-रसविलाप १ ३-काव्यरसायन या शब्दरसायन १ ४देव साया मप॑ थे नाक 43 नसुलसायरनपरग । इनके अतिरिक्त श्री युगलफिशोर मिश्र बजराज के साइय्रा० चुसार 99 -यूनविलास 1७-पावसपिलाखे १ द-देवशतक नई सन के य्नुसारः क६-प्रे सदर्शन ( जो शायद प्र सपर्चीसी हो ) शिवसिह घरोज् फे साध्यानुसार २०-रसानस्व लहरों २१-प्रं दीपिका ररन्सुमिलबिनोद द्ोर ४३-राधिका- बिलासे तथा रतनाकर जी के सनुघंधाल के अनुसार ४५ शिवा ८क हि नौ हे अन्थ है | सुन्यरी सिन्दूर संग्रह-प्रस्य सात हैं बतणय सायारणत ०४ है घोर शिवाप्टक को मिलाकर २४ देवकूल यस्यों का उल्लेग नबरन्त में मिलता है । (5) मेखा कि देव के ही कतिपय ग्रन्थों से स्पष्ट है जीवन में उन साजुमशाह योर अकबर यलीखों के ग्तिरिक्ता दादरी के रईस मवानीकत्त सेश्य फफूब के कुशललिह सरदनसिंद के पुत्र राजा चद्योतलिंह बेस और राज्ञा मागीलाल को आश्रय प्राप्त हुया था । खबरों गविक प्रणंसा उन्होंने सोगीलाल की की हैं अतएव यह परिणास सहज ही चिकाला जा लफ़ता है कि उनके यों रूचि का श्रच्छा सम्पान दुआ होगा । फिर थी घास्तव में कुल मिलाकर देव को कोई ऐसा छाश्रयदाला नहीं मिला जो उन्हें ऐहिक पता से सुक्त कर दना । अतएव थे बैचारे बहुत दिलों तक इधर उधर श्मण करते रहे । इसका आर ्ग परिणाम निकला या नहीं परन्तु कवि का अनुभव झअवस्य हो समुह हो गया । सेन (४) समस्त टिन्दी-काव्य से देव का स्थान तुलसी और सर के इपरोंस सीसरा है--आर श् गार-काव्य में खचवे पहला । इनके करित्व में ऑजायबधघर की भोति थच्छ से अन्छ चुंद देखते चलें जाइए । इनके साहिस्य में श्रभूतपूर्व कोमलला रमिकता सुन्दरता आदि एस कूद कद कर भरे हे । प्रसाद समता साधुयर्य सुकुसारता श्र्थव्यक्ति समाधि कान्ति शोर उदारता नासक गुण डे की रचना में पाये जाते दे । कहीं कटीं श्रोज का भी चसस्कार है । पर्य्यायोक्ति सुधमिता सुशद्दता संक्षिप्त प्रसज्ञताढि गुणों की थी आपकी रचनाओं में बहार है। कुंख मिलाकर जेसी सुहावनी भाषा यह महाकथि लिखने से समर्थ हुए हैं उससे थाघधी सोहावनी भी कोई श्रम्य कवि महीं लिख सका । सापा-सम्बन्धी कांव्याज्ञों के साथ इन कवि ने श्रन्प काव्याग भी थ्रपनी रचना से बड़ी प्रचुरता से रखे हैं । इनके एक एक छंद में झनेकानिक अलंकार गुण लक्षणा ब्यजना ध्वनि सावचुत्ति पात्र रस आदि के उदाहरण मिलते है और सालुपीय प्रकृति




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