पाणिनीय व्याकरण की भूमिका | Paniniya Vyakaran Ki Bhumika

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Paniniya Vyakaran Ki Bhumika by डॉ. वी. कृष्णा स्वामी आयंगार - Dr. V. Krishna Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पाणिनीय व्याकरण की भूमिका / १४ मे अपनी शली म दुद्दराया है इदमघ तम कृप्स्न. जायेत भुवनत्रयम । यदि शब्दाह्मप ज्योतिराप्ततसारान न दीप्यते ॥ दड़ी का वहना है कि शबतर एव विलसण ज्योति है। इस प्रसंग में शत्द का भय भाषा है। भाषाहूपी ज्योति के कारण सार ससार म--पीना ोका म-- प्रकाश पला हुआ है । प्रकाश का अथ जसदिग्ध नान है। अधकार मे पदाथ प्रका- शित नहीं हात । नल्प प्रकाश की स्थिति मे पदार्थों का चान अस्पष्ट या सतिग्ध रहता है । जहा पर्याप्त प्रकाश का प्रवघ है वहा पदार्थों का स्पप्ट और असदिग्ध ज्ञान प्राप्त हो सकता है। तीना लोक मे समस्त पतार्थों को उदभासित करन बाला प्रवाश भापषारूपी ज्याति से ही उपलब्ध होता है । इस ज्योति के अभाव मे तो सारा ससार अधकार म विलीन हो जायेगा । क्सीको किसी विषय का सही नान प्राप्त नही हो सकेगा । समस्त विद्याओ का उच्छेद हो जायेगा । सूय आदि ज्योतिपुजो से वाह्म अधकार का निवारण होता है । विंतु अज्ञान- रूपी आतरिक अधकार का निवारण करने की क्षमता एकमात्र भाषा म ही निहित है। अतएव भारतीय सनीपियों ने वाणी को सरस्वती देवी के रूप में मा यता दी और उसकी उपासना को कतव्य माना वाचमुपास्स्व भाषा की देवी वास्तव म समस्त विद्याओ की दंवी है दडी न इसीलिए का यादश क॑ नारभ मे मगलाचरण के रूप म विद्या वी नेवी वाणी की स्तुति की है चतुर्मुख मुखाम्मोज बन - हुस - वघूमम । मानसे रमता नित्य संवशुवला सरस्वती ॥ वाणी नादि भाषा के ही पयाय हैं। अमरकाश की पक्ति है-- मीवगु वाणी सरस्वती । इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय आचाय भाषा को कितना महत्त्व दते थे । यह नधविश्वास की बात नही है । वैज्ञानिक दष्टि से भाषा का महत्त्व पहचानने के कारण ही उसे देवी का स्थान दिया गया है । ४ भायषा हमार जीवन मे सर्वाधिक महत्व रखती है। समस्त लोग व्यवहार भाषा पर ही जाधघारित है। अशिसित लोग भी अपना काम भाषा के द्वारा ही चलाते हूं। उनकी भाषा भल ही शिष्टसम्मत न हो व व्याकरण की सुक्ष्म वात से भले ही अनभिष हो किंतु भाप के बिना उनका व्यवहार नहीं चल सकता । दडी कहते है




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