यूरोप का इतिहास भाग 1 | Europe Ka Itihas Bhag 1
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.06 MB
कुल पष्ठ :
354
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एण संथनपर्थिया नलवारसपलासतमरधकलहा-र पश्चिमी और सध्य-यूरोप कहते हैं थी । अहाद्वी प के किनारे के शटिश द्वीप सी इन्हीं के थे । यदि वे कन्पे की ओर-भथोत् पू॑ को नमुँह फंगसी तो छन्हें रस ओर रूस के मंगोल और मध्य एशिया के स्टेपीस दिखाई पढ़ते थे यदि ने आरत के साथ व्यापार करना चाहते थे जैसा कि वे चाहते थे-तो दृच्चिणन्पूव और दृक्षिण की भर रृष्टि डालवे । किन्तु बहाँ इस्लामी दुनिया की तलवार मार्ग रोके हुए खड़ी थी । पश्चिम की ओर भट्लॉडिक महासागर था । ससके भथाद जल को उन्होंने कभी पार नहीं किया था और बहीं उनके लिये दुमिया का अन्त था । इस प्रकार गोरे लीग उस तंग सहा्वीष में बन्द थे । एकाएक दो ऐसे नाटकीय कायें हुए जिनके कारण ने केबल संसार का इतिहास ही पलट गया बच्कि उन्होंने मसुष्य-जाधि में गोंरों काश्थान ही बदल दिया । सभ् १५९९ में कोलस्बस अटलांटिक महासागर होकर भारत के लिये एक नया मारे तलाश करने को निकला और मद के २ मूतम भहा्वीप में जा पहुँचा । सन् १४५८ में वासको डॉ गामा भी सारत के लिये एक नया मांग दूँढसे हुए जकीका के ठेठ दक्षिण की ओर होता हुआ हिन्द सददासागर होकर कालीकट आयों । गोरे लोगों थे भठलान्टिक अदासागर-रहूंपी बॉघ को लोड . छाला और केप आफ पुर होप द्वारा इस्लामी शक्ति पर विजय ग्राप्त की । इन्हीं दोनों महंत सफलतामों ने चनके साग्य को पलट दिया । बन्होंने फोरन नह दुनिया का पंत्रा लगाया और समुद्दों को वी के पार करने को मारे बसाया। उसी समय से चार शतादंदी. से छाधिक से-न्िटेन घर पश्चिमीय मध्यन्यूरोंप के गोरें लोगों के.
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