भारत के संकटग्रस्त वन्य प्राणी और उनका संरक्षण | Bhaarat Ke Sankatagrast Vany Praand-ii Aur Unakaa Sanrkshan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bhaarat Ke Sankatagrast Vany Praand-ii Aur Unakaa Sanrkshan  by एस. एम.नायर - S. M. Nayar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about एस. एम.नायर - S. M. Nayar

Add Infomation AboutS. M. Nayar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
विलुप्त होते वन्य प्राणी / 7 से प्रजनन करने वाले हाथी के एक जोड़े से भी 750 वर्षों में करीब एक करोड़ 90 लाख हारथीं तैयार हो सकते हैं। यह सब आश्चर्यजनक लगता है न लेकिन प्रकृति में ऐसा क्यों नहीं होता है? किन कारणों से प्राणियों की जनसंख्या नियंत्रण में रहती है ? इसका एक कारण है-भोजन के लिए स्पर्धा । एक जाति के प्राणी भोजन के एक ही साधन के लिए स्पर्धा करते हैं जिसका शारीरिक रूप से अयोग्य प्राणियों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भीड़-भाड़ भी विनाश के अन्य कारणों को जन्म देती है जैसे बीमारी और अपर्याप्त पोषण । परभक्षण भी एक और कारण है। पारिस्थितिक तंत्र का यह एक प्राकृतिक नियम है कि मांसाहारी प्राणी शाकाहारी प्राणियों को खाकर जीवित रहते हैं जैसी कि भोजन श्रृंखला के विषय में पहले चर्चा की जा चुकी है। विपरीत जलवायु प्राकृतिक विपत्तियां पारिस्थितिक आवास का नष्ट होना आदि प्राणियों की जनसंख्या पर नियंत्रण के अन्य कारण हैं। इस प्रकार जनसंख्या उन कारणों से नियंत्रित होती है जो अंत में वातावरण की जीवन पनपाने की क्षमता को सुनिश्चित करते हैं। सभी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र उपलब्ध संसाधनों के अनुसार प्राणियों की एक विशेष संख्या को ही जीवित रख सकते हैं। परिवेश प्रणाली की जीवन पनपाने की इसी अद्भुत क्षमता के कारण परस्पर निर्भर और एक-दूसरे से संबंधित प्राणियों की जनसंख्या के बीच नाजुक संतुलन बना रहता है। प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र उन विविध प्रकार के जीवों का पालन-पोषण करता है जो उसके वातावरण के अनुकूल होते हैं । वे जीव आपसी निर्भरता और आसपास के भौतिक संसार से संबंधित घटनाचक्र में भाग लेते हैं । पौधों द्वारा अर्जित ऊर्जा प्राणियों को प्राप्त होती है। पौधे भूमि से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं जो उनकी मृत्यु तथा सड़ने-गलने के बाद भूमि में वापस लौट जाते हैं। मृत्यु का स्थान नवजीवन ले लेता है। प्रकृति में संतुलन एक ऐसा अबोधगम्य तथा जटिल प्रदर्शन है जो लाखों वर्षों से वर्ष-दर-वर्ष शताब्दी-दर-शताब्दी चलता ही आ रहा है। जातियों का प्राकृतिक विलुप्तीकरण पारिस्थितिक तंत्र के जटिल तथा स्थायी होते हुए भी ऐसे अनेक प्राणी जो प्रारंभिक भूवैज्ञानिक युगों में पृथ्वी पर विचरण करते थे अब विलुप्त हो गये हैं। विलुप्त होना प्राणियों के विकास की एक प्राकृतिक घटना है। कुछ जातियां धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती हैं क्योंकि वे प्रकृति में अधिक अनुकूल जातियों के मुकाबले




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now