मेवाड़ का इतिहास | Mebar Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाराणा अनरात २. ] पीप६ पट, [ पुर, सडिठ बगर . का बयान ७३१ पक: कक प्ससपसटशसससतदध्डसमससससासनय 2 पयमससरसडयसस-दशगजराससरः डा ः बःनामां पूरी श्री मजराजाजों की हुई, अर में महाराजाजीका इंधलास सेती या | | बात हजूरी कूं न ठिषी, और अबे अलीबेगकूं साथी पत मुबारीकबा गीके च्ञाप पासी पींदायो छे, सो १ मासतानके ताइं ताकीद कीजे, जो ऊंके ताई प्रगनाः अमल वा कक: लन् । दषल दे; और या बुदनामी अआपकूं हुई हे, सो सुन्दर वकील कीघांसू हुई छे; अं . । पर घुदा न करे जे या बात हजुरीमें अरज पहुंचे, तो थाकूं पूरो श्ोठमो आवे, | भर ट्न्द्रन आपको जाहीर कियो हैज, बाद ऐी बंदोन कु रजा-द॒कीया है, | सोया बात झूठी कही छे; कोण सो कांम पातसाहजीको ईने कीयो, तीसु हम रजामंद हुवा, तीसु रजामंदी हमारी इंम हेज, श्रगने सुं हाथ बेचे और हमारा अमल वाकहे होय, और माहाराजभी है बातकूं जाणो होज, हमारा भी कुठी मुजरा हजुरमें ई ही बातसु है. प्रगनेमें अमठ करां भ्ोर तुम्हारा ठोग न न दषठ छोड़े नही छे, तीयेजे हमारे ताई हजुरी थी नुकसान पहुंचे, श्योर महाराजीक पुरी बः नासा _आवे, तो या बात भठी नहीं, और सुंदर वकील थे जु कछ हम ' कहां हां, सोतो च्आापकु वा कई कहे नही, और जु कछु महाराजी कहे सो वा हमसूं ) कहे नही. सो ई बात माहे मतलब बीचमें ही रहे हे, ओर आपस मांहे षेच होय है, | भर जे कोई कार का आदमी है, तीनसु तो मीठे नहीं, और ऊपर ऊपर छाभानत मीठी के का की सो श्री महाराज ई बातके ताई खातरमें लाय करी कयास करोगा जी, ओर बाजी बात अठी-प सु जुबानी » सो आपकु कहेगा जी, ओर घणा क्या ठीखे. मी० असोज सदी १८५ मनी (१9). दे ं ध १ च् डे श फ के ागर' नाजनण, कै कै 1 । | गदर पदरिययार चार चकर कर चकम्यिगपद, ७ ादामयकानगदन बन्‍ननमाननववाद:0 जे (ननननाणाणाण _.... पर्गनह पुर मांडठ, बःनोर और मांडठगढ़, तीनों बाददाह अआलमगीरने ) फोजक कोके वक्त जब्त करठिरे थे, और (जज; £[एके एवज- यही पर्मने शुमार किये, जिसंप महाराणा जयासे .ने विक्रमी १ ४७ [| हि ११०१ £ इं० १६९०] । में एक ठाख रुपया जिज़येका देना कुबूल करके पर्गने वापस छिये. इक्रार मुवाफिक रुपया जमा न होनेके सबब कुछ त्मूर्सें तक तो न्तिजार अदा करन ज रहा होगा, लेकिन नस य:चनके सबब फिर यह तीनों पर्गने बाद्शाहने जब्त कर लिये थे. | इसपर भ.ाराणा जयासे ,के राज-्मार ( अमरां:।.. ) ने अपने नामपर ठेकेमें करवा लिये, उस वक्तके दो कागुजू फृप्दंस्‍: हमको मिले हैं, जिन ८, यहां | लिखते हैं:- म १० ता० १४ रबाडुर तनी न हे १६९८ ता० २१ ऑक्टो ९ 1, सह के (३) [ हिजी ११ ; प्र काप्यकदवतवतद. । हेड । ः ग 1 ब । है ही ८-5 ट ठ | नि से. जद बा जा अ




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