पक्षपातरहित अनुभवप्रकाश | Pakshpaat Rahit Anubhav Prakash

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Pakshpaat Rahit Anubhav Prakash by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- अललुकमणिका ! विषय सर्वे देशोंगें मिन्न २ व्यवहदा रौंकी कत्पना किसने की है पर- स्पर मेद क्यों दीखता है? सम और साधारण नियम... चार वर्ण चार आश्रम न्वार बंण और आश्रम सर्वे देशोंमें हं उत्तम कैसे होता है? ..... .... चीच कौन है? ... .... ... मिन्न २ जाति आदि संत्ञा वांधनेसे कया छाम है? .... .... बाहझण कौन है]... .... न्रिय किसे कहते हैं? वैश्यनाम किसका है! शूद किसको कहते हैं?! नीच कैसे होता है? .... वर्णाश्रमविमाग प्रजाकी उन्नतिका का- रण परझुराम .... राम-( रामकथाका यथाथे आप्या- लक आशय है... .... थे के के शक केक के थकेके कक ककेकहे के केक ईश्वर भावनामें है .... .... ... कृष्ण कौन है ! नरसिंहाबतार ..... ... नाद सौर विंदुमेदसे दोप्रकारकी सुष्टि जुहर्सिह शाव्द्का अये हि कामक्रोधादिका ढामाठाम ही क्रोध 1 ् १ के हिकेथाकी बा के की मोह व श क##4 के के थे लोम का की आहक्ार ” ”. ,.... ... वेराग्यादि दैवीगुण!” ,... . .... घर्माधम ! ह. ..... :. अपना सदाचरणद्ी करयाणका कारण पृष्ठ, ४९१ ४९२ के ५९४ डे ४९द्ू कह ४९७ पक ४९८ ह क्र ४९९, विषय, कोई धर्म ( मजहव ) नहीं .... उत्तमता, मध्यमतता, धन भौर कुछ (१९) पृष्ठ, 9९९ सादिके आधीन नहीं .... . ... ५०० नीच कौन है .... ना जी उत्तमता संपादन करनेवाठेका कपैव्य ५०१ प्रयागादि तीर्थ... .... 1 एकादशीशआादिब्रत.... ५०२ पथ महाब्रत 2! चार महान्रत ..... ,.... क नव महीत्रत्तोंका फठ . ..... ... ५०६४ अन्य पश्च महाब्रत.... .., . .... ह7. सत समुद्र बल «०. ००» ५०% वीरमद्र-( दक्षप्रजापति और यह्ृष्वंस ) सहस्नबाहू ...... .... ... १०६ बाराह मगवान्‌ .... नरक सषनाग . ... . ८. «८. ८ ५०६ रावण .... ..« ««« «००० ५०९७ स्तव्याइति .. .... .... ... ९०८ राजाजनक... .«... ..... ,., ५११० विधाम्त्रि... . ....... ..... 2 आतज्ञानके साघनरूप तपस्या .... ९११ तामसी राजसी तपस्या... ..... ” सर्वेष्कष्ट तप. ...... ,...... ,.... तपस्याका फढ ..... ..«. ,,.. शाल्लो्की व्यवस्था, .... ..... .... ९१९ सुखशांतिका साधन ,. -«« पु द्रौपदी .... .... .- 1 अहुकार-( समश्रिव्यष्टि फुरना रूप सहँकार ) क्र जम पु राजा प्रियब्रत ...... ««:«. «न पूथुराज ..... .«... ««««.. ««» (७ दाव्दादि विषय... «««. ««« ५१८




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