भागवतम | Bhagavatam

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Bhagavatam by मुंशी नवलकिशोर - Munshi Nawalkishor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सायाधमृततरडियी । २४ मानके नॉल्ये। विरनाविवेक . २०४ ॥ विमडवाच ॥ णरस प्शंसायाग जरा सुर बाणी सदंस्वच्छ । सरझत नीच रिरा रादित ताहि शिनत हसतुच्छ9 ०६ ॥ ेरठा ॥ सर एारा अतिनीच भनकसने कह भालन्तें । खरे अबया केबीच तप्त घाव तरणी तनय १०४७ कक बचन सन कान दुश्सह लगेदयाल उर। नरपति नी तिनिधान लिप विचार कद्योन कछु ९०७ ॥ दादा ॥ संछिपति व्हीस विचार सन स्वलनर तनर्वासि र्यात। नर पशिरकी निंदा करे बदत बंचन व्याघात १०८ चाल कोबिद बिन विपल समासकल आसीन । तिहि सुनाय स्तलाय तब लात नूएति प्रलीन ११० क्र छातघनी सदर्सात हरि ते बिपुख विचार ।. सच्छर साते सत्तपर उररधारि अति उपकार २११४ ॥ रोलाइतं ॥ झीसियवर यशर्जादित तेएस लुलसीकी बानी । सकल अतिनकेा सार सदा शिव सुर्ात बखानी ॥. सीहनुसत दी साख जण्त येागी जन ज्ञाही । तिहिं लिंदत सति तुच्छे करेजा सासकत नाइं ॥.ततसन लखन जिया पड याकाजन कोई । . घसायास अवधेश अधि अंबज रतिहेा दि १४२) कब्ित सारति संबस्सीअघर आज नेयरव्सी तारदकी तत्व से सहेश सन सानीदै । ऊखन पियर्द्न सयखन ते सीठीमंज पारखी प्रसिद्ध सिच्च ओक उर आनीहे ॥ . रस्य रघराज गुणा मुक्ताका चनन हारी सारा सारशेा- घबेके बिरेंद बिज्ञादीहे ।. पंडित घ्रसानी ठह छ- चसीनछानी स्सिति- संददुखरदानी तस्ववुलसीक्ी बानी




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