सिन्धी की श्रेष्ठ कहानियां | Sindhi Ki Shreshth Kahaniyan
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.93 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)च् मुद्दागिन
मेरे तुम हो, जिसने हृदय में बपों से दी हुई अमिलापा को आरा
को ससक दिलाई हे । मुखने सम्बस्व रतोगी, चम्पा /”
“लेकिन तुम मी संसार की तरह र्वार्थी तो सिय नहीं होगे ?”
गये सर सार्गी । सपद्र करमा ही तो जम्म से मेरा कर्पम्य
रहा है । में संसार से अत देता हैं ।”
ढ़ संमंघ रलांगे मुमसे पट / सभी बह यो परूट में
साम दे | मुसोषत में ही प्रेमियों और मित्रों छी सत्यता की परीशा
होती दे ।”
“गर्या । में तुर्हारे लिये सब कुल कर सकसा हैं ।”
ठीक है । में प्रतिदिम मुर्हारे यहाँ आउँगी । तारों शी दाह में
तुम मीये-मीखे बातें करेंगी ।
इसके बाद प्रतिदिन रात को जब चम्पा का जद पति अफीम
लाकर मीद में पेयृष ह। जाता ता बसपा कमर पर गागर हिए
पनट के पाप्त आती | दोनों में मीरी-मीठी बातें होती । इस तरह
बातों ही बातों में वे अटूट प्रेम-सूभ्र में बेंप गए |
एक दिन चग्पा अल मारे के बाद शीप् ही लौटने लगी।
पगभट में हिचित आरपर्य से पूधा--'पह कया, प्रिये ! अभी रात
है शेप और बात है शेप...”
उमझ सारप्य ठीक महीं।” चम्पा ने उदास स्वर से
गहा- सिर से दसा का दीरा तेज हो गया है।”
पचपट बुत बाला! चम्पा चपला को तरह चमक कर
चबती गईं !
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