सिन्धी की श्रेष्ठ कहानियां | Sindhi Ki Shreshth Kahaniyan

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Sindhi Ki Shreshth Kahaniyan by क्षेमचन्द्र सुमन - Kshemchandra Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च् मुद्दागिन मेरे तुम हो, जिसने हृदय में बपों से दी हुई अमिलापा को आरा को ससक दिलाई हे । मुखने सम्बस्व रतोगी, चम्पा /” “लेकिन तुम मी संसार की तरह र्वार्थी तो सिय नहीं होगे ?” गये सर सार्गी । सपद्र करमा ही तो जम्म से मेरा कर्पम्य रहा है । में संसार से अत देता हैं ।” ढ़ संमंघ रलांगे मुमसे पट / सभी बह यो परूट में साम दे | मुसोषत में ही प्रेमियों और मित्रों छी सत्यता की परीशा होती दे ।” “गर्या । में तुर्हारे लिये सब कुल कर सकसा हैं ।” ठीक है । में प्रतिदिम मुर्हारे यहाँ आउँगी । तारों शी दाह में तुम मीये-मीखे बातें करेंगी । इसके बाद प्रतिदिन रात को जब चम्पा का जद पति अफीम लाकर मीद में पेयृष ह। जाता ता बसपा कमर पर गागर हिए पनट के पाप्त आती | दोनों में मीरी-मीठी बातें होती । इस तरह बातों ही बातों में वे अटूट प्रेम-सूभ्र में बेंप गए | एक दिन चग्पा अल मारे के बाद शीप् ही लौटने लगी। पगभट में हिचित आरपर्य से पूधा--'पह कया, प्रिये ! अभी रात है शेप और बात है शेप...” उमझ सारप्य ठीक महीं।” चम्पा ने उदास स्वर से गहा- सिर से दसा का दीरा तेज हो गया है।” पचपट बुत बाला! चम्पा चपला को तरह चमक कर चबती गईं !




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