मनोविज्ञान | Manovigyan

Manovigyan by उमापति राय चन्देल - Umapati Rai Chandel

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श मनोविज्ञान का उद्देश्य आर रीति रच थे नामसे वया ? शाब्दोंका श्रंप॑ बदलता रखता है। हमारे प्राचीन निज्ञान सदियोंसे विकसित होते रहें हैं परन्तु श्राज उनके नामों को देखकर उन विज्ञानोंके बरतें मान स्वरूपका स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता। मनोविज्ञान भी एक प्राचीन विज्ञान है। कई बाताब्दियों तक इसकी परिभाषा भ्रात्म के विज्ञानन(या दर्शन ) के - रूपमें की जाती थी। परन्तु झ्राज मवोविज्ञानका जो स्व रूप है उसका सही चित्न न तो उस शाब्दिक श्रथेंसे श्रौर न ही उस पुरानी परिभाषासि स्पष्ट हो पाता ह। वर्तमान शताब्दी के प्रारम्भ जबू मनोव॑ज्ञानिक इसको एक अ्ाधुनिक विज्ञान की_रूपरेप्ला देनेके लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे थे तब उनके एक नेतासे मनोविज्ञानकी परिभाषा लतानेके लिए कहां गया । उसने जो उत्तर दिया उसे तब्रशे बहुधा उद्ूर्त किया जाता है । उसका उत्तर था- - जिसमें मनो- बेज्ञानिकू दुचि में) लात्पये यह हैं कि इस विज्ञानकी प्रकृति समभनेके लिए यह श्रावइयंक हैं कि मनोवेज्ञानि कों के कार्य का मिरीक्षण किया जाय शरीर देखा जाय कि वे क्या प्राप्त करने की चेष्टा कर रहे हैं (१) दूसरे महायुद्धके समय पहचिले महायुद्धसे भी श्रधिक मतों . चैज्ञानिकोंको राष्ट्रीय संकटको टालने में हाथ बटानेका प्रबसर मिला । उनके अजित ज्ञात भ्रौर रीतिवोंका उपयोग विभिन्न फ़ौजी समस्पाधोंको युलभकाने में किया जा सकता था श्रौर मतोवेज्ञानिकोंने युद्ध-क्रांलमें तरहुन्तरहसे सहयोग किया भी । एक बड़ी समस्या जिधकों यद्ध के पहले भी श्रौद्योगिक क्षेत्र में सुलभाने का प्रयहन किया गया था यह थी कि आदमी को उचित काम श्रौर कामको उचित भ्रादमी मिलें । इस समस्या को कई दुष्टिकोणोंते देखा जासकता हूँ । झादमीकी योग्यता श्रीर रचियोंका पता लगानेके लिए उससे कुछ प्ररन किये जाते है भ्रौर कार्यका यो कहिए कि कई कार्योका विदलेषण हंस उद्देदपरो किया जाता है कि मालूम होसके कि प्रत्येक के के लिए कसी योग्यता श्रौर सचियोंका श्रादमी के श्रन्दर होता ज़रूरी है। परन्तु कार्षके लिए ठीक श्रादमी श्रीर श्रादंगी के लिये ठीक कार्येका चुनाव कर देने मान्से समस्याका हल पुरा . नहीं हो जाता। प्रादमी को विसान-चालक या रेडियोके गुप्त . संक्रेतोंको पकड़ने श्रौर भेजयेके या किसी श्रन्य तये कामका प्रशिक्षण मिलना चाहिये और सनोवेज्ञानिकों में अच्छी-से कोष्ठक्ें दी हुई संख्पाका सम्बन्ध परिशिष्ट से से हू। ९ क श्रच्छी प्रशिक्षण पद्धतियोंको विकसित किया भी । इसके अतिरिक्त कार्यको श्रच्छी तरह पुरा करनेके लिए चा लवाकें देखने सुननेकी शक्ति या हुस्त-कौदालकी बहुत भ्रधघिकआा वश्यकतता होती है श्रीर मनोवैज्ञानिक दुष्टिकोणस सावधानी के साथ ग्रध्ययन करके इनको बढ़ाया जा सकता है। मनोवैज्ञानिकोंका काम आदमी की योग्यता को पुरी तरह परख लेने तक ही सीमित न था चरन्‌ उन्हें उसकी क्रोध भय इत्यादि संवेगोंके होने पर भी श्रविघलित बनें रहमेंकी शवित श्रौर युद्धकी कष्टिन परिश्थितियों को भोले नेकी सामध्य पर भी विचार करना पड़ता था । कम्पनी डिवीकन था झन्य समूहों का श्रतुदासन्‌ व उत्साह शोर स्नुशासन लाना तथा फूट डालसेवाले शत्रुके प्रचार एवं प्रवादों (पफ़वाहों) का सामना करना-श्रादि समस्याएं कुछ सनोवेज्ञानिकोंको सुलभाानेक लिए दी गयीं । कुछ ग्रस्य मनोवैज्ञानिक कार्य भी थे जैपे उन सैनिकों का पुनर्वात्त जो मुद्धमें श्रपने प्रवयव खो बे या जिनके संवेगों में सन्तुलन नहीं रहा श्रौर भूतपुर्व सेभिकों को उनकी शिक्षा तथा नागरिक ब्यवसायों की यो जनाकें सम्जन्ध में परासशं श्रादि (.११)॥ यद्धकालकी कुछ प्रमुख समस्थाश्रोंक्रो सुलभकाने में मतों चिज्ञानके जो विभिन्न उपयोग किये गये वे निर्स्देहूं शू। स्ति- कालीन उपयोगोंते भिन्न थे परस्तु युद्ध प्ौर शान्ति दोनों में ही सनोधिज्ञानका सम्बस्ध मानवीय तत्व हैं। उद्योग शासन प्रथवा शान्ति तथा समृूद्धिकी वुंद्धि करनेवाले एक विदव-संगठत की स्थापनामें मसाधवीय तरब होता हैं। उद्योग श्रौर सरकारकी मलीनरीकों चलनिवाला मनुष्य होता है उस की इच्छा शरीर कार्य-कुशलतकि बिना ये कुछ भी नहीं करसकतीं । यदि हम शन्तिकाल में सनोवेज्ञा मिवों को श्रपनी प्रयोगशाला स्रोंमें कार्य करते देखें जहां वे व्यावहारिक प्रधोगोंकी श्रपेक्ष मौलिक प्रस्वेषणं में झधिक व्यस्त रहते हैं तो हम पायेंगे कि वे यहां भी मानवीय व्पबहारकी समस्याम्रोंको समभाने में जुडे हुए . हूं।. मानवीय व्यवहार का बिज्ञाने--हालाकि यह अभी चिर्माणात्मक स्थितिमें है तथा कतिपय श्रस्य ब्रिज्ञानोंकी तुलनामें बहुत कम विकसित हनसनुष्यके सामूहिक शरीर व्यक्तिषत क्रिपाकलापकों सुग्यवस्थित करनेके लिए भ्रन्तमें दूढ़ प्ाधार प्रदान करेगा । ९ ]पचघ्रा दिए ए1




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