हिंदी उर्दू और हिन्दुस्तानी भाग 2 | Hindi Urdu Aur Hindustani Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे हिन्दी उदू श्रौर हिन्दुस्तानी रूप में--इस बात को ठीक मान लेने पर भो इस पर अमल या व्यवहार नहीं हो रद्दा पंचों का कहना सिर-माथे पर पर परनाला वहीं बहेगाः वाली बात हो रही है ? केवल विदेशी भाषाश्रों के शब्दों का उच्चारण सेद ही झगड़े का कारण नहीं है अपनी भाषा के ठेठ हिन्दुस्तानी शब्दों के बारे में भी यही बात है । प्रान्तीय भेद के कारण एक ही शब्द भिन्न- भिन्न रूप में बोला जाता है यद्यपि लिखने में उसका एक ही रूप रहता है पर बोलने में लदजा या टोन जुदा-जुदा होती है। यह बात कुछ इमारी हिन्दी ही के सम्बन्ध में नहीं है संस्कृत श्रोर अँगरेज़ी के उच्चा- रण में भी है। बंगालियों का संस्कृत उच्चारण बंगला ढंग का होता है दक्षिणियों का दक्षिणी ठंग का और मदरासियों का इन दोनों से जुदा अपने ढँग का | राजशेखर ने श्रपनी काव्य मीमांसा में संस्कृत श्र प्राकृत के उच्चारण-मेद पर बहुत कुछ लिखा हे । किस प्रान्त के लोग प्राकृत का उच्चारण अच्छा करते हैं श्र क्रिस जगह के संस्कृत का । इस पर खूब बहसकर के संस्कृत श्र प्राकृत के लिये पांचाल प्रान्त तथा संयुक्त प्रदेश ( मध्यदेश ) वालों का उच्चारण श्रादश माना है 1६ जैसे सय्यद इन्शा ने उदू के लिये दिल्‍ली वालों का । सार्गानुगेन निनदेन निधियुशानां सस्पूणवसारचनों यति्विंभक्त । पाज्चालमयलमसुवां सुभगः कवीनां श्रोत्न मधु क्षरति किश्वन काव्यपाठः ॥ ( का० सो० ७ अध्याय ) गोडाद्या संस्कृतस्थाः परिचितसचयः प्राकृते लाटदेश्या सापज् शघ्रयोगाः सकलमसुमुवष्टछमादानकाश्च । श्रावन्त्याः पारियात्राः सड दृशपुरजेभू तभाषां भजन्ते यो मध्ये मध्यदेश निवसति स कवि सवेभाषानिषययणु ॥| 1 कं ७ मी० १७ श& )




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