कलकत्ता के नज़दीक ही | Calcutta Ke Najadeek Hi

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Calcutta Ke Najadeek Hi by गजेन्द्र कुमार मिश्र - Gajendra Kumar Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 कलकत्ता के नजदीक ही स्त्री को मैने मारा भी तो क्या हुआ ? तुम्हारी श्रौरत को तो नही मारने गया। देवेन ने नरेन के गाल पर कसकर एक तमाच्ा जडकर कहा ऊपर से मुभी से ऊलजलूल बकता है हरामजादा सुभ्रर कही का मुभ्ी से बहस करता है। तमाचे की जलन सहने मे नरेन_ को जरा देर लगी । देवेन के पतले हाथ का तमाचा था न । पाँचो भ्रंगुलियाँ नरेन के गाल पर उभर झ्राई। प्रब तो नरेन एकबारगी बिगड़ खडा हुमा । मझाँखे छलछला शझ्राई पर गाल सहलाते हुए मुँह बिचकाकर बोला क्यो नहीं करूँगा बताओ तुम मृभे पालते हो ? तुम्हारा खाता हूँ या कि तुम्हारे बाप का ? फिर फिर साले--फ़िर भी मुँह से गन्दी बाते निकालता है । मेरे बाप का नही खाता तो किसके बाप का खाता है ? तेरे-मेरें बाप दो है--गोबर-गनेश कही का तुम मुक्त मारने वाले कौन होते हो मु्ते गाली देने वाले तुम कौन होते हो ? मेरी जो इच्छा होगी मै करूँगा । नरेन क्रोध से फुफकारता शऔर प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर देवेन के सामने पर पटकता हुआ बोला । दिखाऊँ ? दिखाऊं फिर एक बार ? देवेन झागे बढ गया । शुरू हो गई हाथी-कछुए जैसी लडाई । देवेन एक हाथ से उसकी धोती पकड़ दूसरे से पीठ पर धमाधम मुक्‍्केबाजी करने लगा श्रौर उधर नरेन ने देवेन का जो हाथ सामने पाया दॉतो से धर दवाया । दॉतो की पकड इतनी गहरी थी कि खून निकल श्राया । देवेन की स्त्री ने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया । दयामा पहले तो यह घटना देखकर स्तब्ध हो गई पर देवेन की स्त्री को रोते देख वह भी जोर-दोर से रोने गी । उधर क्षमासन्दरी भी उनके सामने ही सर पटक-पटककर रोने लगी-- # प्यरे तम्हारे कारण मै सिर पटककर मर जाऊँ क्या ? कोई है जो मुझे श्रफीम ी ही लादे खाकर सो जाऊँ श्रब और नहीं सहा जाता मुझसे । विवाह मे आये सभी भ्रतिथि विदा नहीं हुए थे। उनमे से ही दो-चार ने दौडकर बडी मुश्किल से दोनो भाइयों को अलग किया । नरेन को कमरे मे बद कर बाहर से साँकल लगादी । पिजड़े में बद भेडिये की तरह वह उछल-कुद मचाने लगा और बुरी-बुरी गालियाँ देता रहा । देवेन भी हाथ के घाव को फिटकरी के पानी से घोकर पट्टी बाँधते हुए गालियाँ देता रहा । गालियों की बौछार मे दोनो के माँ-बाप भी अछते नही रहे । उस सध्या के बाद मुंह लटकाये श्रानाकानी करते इयामा ने लाज-दरम छोड़ कर भ्राखिर कह ही दिया माँ भ्राज मैं झापके पास ही सोऊँगी । क्षमा का चेहरा पलक भर स्याह रहा पर दुसरे ही क्षण इयामा की पीठ थाप- थपाकर बोली वे हाँ छोटी बहु । अब श्र उस बन्दर के पास जाने की जरूरत नद्दी हा




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