भारत के आदिवासी | Bharat Kai Aadiwasi

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Bharat Kai Aadiwasi by जनक अरविन्द - Janak Arvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मणिपुर के निवासी [७ वरमियों के वस में न था । इतिहास इस वात का साक्षी है, कि यहां के निवासी धन कुबेर थे । भले ही श्राज वे दीनहीन हो गये हों, परन्तु पुरातनकाल के खण्डहर तथा अ्रन्य ऐतिहासिक स्रोतों के श्राघार पर इसके सुनहरी श्रतीत का पता चलता है । मणिपुर के दाही महल ग्राज भी जब सेंकड़ों वर्षों की बीती हुई गौरव गाथा कह उठने हें; तो रौंगटें खड़े ढ़ो जाते हैं । वास्तव में ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर यदि कोई देव-भूमि है) तो वह केवल मणिपुर प्रदेश ही है। गौरव पूर्ण प्रकृति भी जिस पर ऐसी मोहित है, कि श्राज तक कभी भी उसकी गोद सुनी नहीं रही । उसका श्रांचल हीरे, मोतियों तथा श्रन्न के भण्डारों से सदा भरपूर रहा है । धन्य है तू हे मणिपुर प्रदेश ! भारत ने तुझ पर सदा गर्व किया है। भविष्य में भी उसके नेत्र ग्राशात्रों में झूम कर तेरी श्रोर निहार रहे है। इस प्रदेश के श्रसली निवासियों को “मेये” कहा जाता है । वैसे तो इन लोगों की शकलें चीनी लोगों की भान्ति ही होती हैं परन्तु इन का डील डौल उनकी तरह नाटे क़द का नहीं होता । श्रपितु यह भारत के श्रन्य श्रायं वं शजों की भान्ति ही उच्च तथा बलिप्ठ शरीर के होते हैं। इनके मुख की बनावट चीनी लोगों से कुछ कुछ मिलती जुलती है परन्तु बहुत से लोग इनमें ऐसे भी हैं , जो हमारी तरह ही सरल मुखाकृति के भी है । कारण यह है, कि वास्तव में यह श्रायों के ही वंशज हैं, परन्तु सीमा प्रदेश के निवासी होने से बाहर की तियों से भी इन का सम्बन्ध रहा है तथा उन से त्रिवाह श्रादि सम्बन्ध स्थापित करने के कारण से, कुछ वंशों की मुखाकृतियाँ विदेशी लोगों से मिलने जुलने लगी है । यहाँ पर वसने वाली 'मेये' जाति के लोगों की मुख्य जीब्रिका कृषि है । पर बहुत से लोग वनों में लकड़ी श्रादि काटने तथा ढोने का काम भी करते हैं । जगह जगह श्रनेक प्राकृतिक जल कुण्डों में लोगों ने मछली पकड़ने का व्यवसाय भी स्वीकार कर रखा है, क्योंकि मछली यहाँ का मनभाता खाजा है ।




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