नसीब अपना अपना | Nasib Apna Apna
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.36 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नसीव : अपना-अपना | है
जव उसकी सुनायी कहानी मेरी कलम से निकलकर पृस्तक के
रूप में प्रकाशित होती है तव उसे पढ़कर वह कहता है--“'यह क्या
किया आपने ? यह ठीक नहीं हुआ । मैंने जसा कहा था, आपको वैसा
लिखना चाहिए था । इस तरह आपने बदल क्यों दिया ? भा इसे
लोग खरीदेंगे ?''
में कहता--“न खरीदें । मैंने जो अच्छा समझा, वहीं लिखा । इस
सम्वन्घ में तुम्ट कुछ नहीं कहना चाहिए। अगर बदनामी होगी तो
मेरी होगी, तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा ।”'
हरिपद कहता --“वात सही कह रहे हैं, पर लोग व्या कहेंगे ?'”'
में पुछता---“लोग क्या कहेंगे ? क्या मतलय ?”'
हरिपद कहता--“वाह, लोगों को तो यह मालूम है कि भाप
मुझसे कहानियाँ खरीदने हूं ।''
क्या मतलव ? लोगों को केसे मालूम हो गया कि मैं तुमसे
कहानियाँ खरीदता हैं ?”
दरिपद कहता--''मैंने लोगों को यही बताया है ।”'
में नाराज हो उठता । कहता--“'क्या इस चात का कोई प्रमाण
दे सकते हो कि मैं तुमसे कहानियाँ खरीदता हूं ?”'
सचमुच इस वात का प्रमाण कहीं भी नहीं है। मैं नकद रुपये हरि-
पद को देता हूं, उसके वदले वह मुझे कोई रसीद नहीं देता । कहानियाँ
खरीदने के सम्बन्ध में में भी उसे कोई रसीद नहीं देता ।
केवल इसी वात को छेकर आपस में जरा मतान्तर होता है, मना-
न्तर भी हो जाता है । हरिपद क्रोध में आकर कहता --“'ठीक है सर,
अब आगे से आपको कोई कहानी नहीं वेचूंगा ।”'
में कहता--“नहीं वेचना चाहते तो मत वेचो । इससे मेरा कोई
नुकसान नहीं होगा । बाजार में काफी कह्ानी-सप्लायर हैं। मैं उन
लोगों से कहानिर्या खरीदँगा । दाना छींटने पर चिड़ियों की कमी नहीं
दहोगी- - इसे जान लो ।''
हरिपद भी नाराज होकर कहता- “ठीक है सर, अगर आप यही
चाहते हैं तो उन्हीं लोगों से कहानी खरीदिये । मुझे कोई एतराज
नहीं है। में आपके वदले शिवशंकर वायू को कहानी सप्लाई करूँगा |
चे मु कहानी पीछे एक सौ रुपये देने को कहते हूं ।”
के न्थ
में कहता-*“'ठीक है, तुम उन्हें दे सकते हो ।”
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