अर्थ विज्ञान | Arth Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.59 MB
कुल पष्ठ :
446
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)* निकाय
[रत की आधिक-अवस्था अच्छी नहीं । व करुपा-
जनक और भयछ्र दे । करों का बोमक बढ़ता ही जा
रहा है; प्रथ्वी की उवेरा-शक्ति कम होती जा रही है; व्यापार-
व्यवसाय की शिक्षा का यथेष्ट प्रबन्ध न होने से देश की
सम्पत्ति-वुद्धि के मार्ग में बाधायें आ रही हैं । हर मनुष्य की
वार्षिक आमदनी ३०] से अधिक स होने पर भी, समय
के प्रवाह में बद कर, लोग..बिलासिता की ओर भुकते
जा रहे हैं । ऐसी दुरवस्था में पढ़े हुए। भारतवासियों के
लिए अथेशास्र के. सिद्धान्त जानने और झपनी श्राधिक दशा
सुधारने की बढ़ी ही. आवश्यकता है । अतएव पण्डिते
सुक्तिनारायण शुक्क ने यदद पुस्तक लिख कर द्विन्दी-भाषा-माषी
जनता 'पर बड़ा उपकार किया है । .
: सोर॑लेंड साइब उच्च पद्रथ सरकारीः कर्स्मचारी थे । इन
ब्रान्तों में वे एक ऊँचे पद पर थे। खेंती के मदकमे के वे कत्तो
और विधाता थे। विपन्न और सम्पन्न, सभी - तरदद के . भारत-
वासियों की आर्थिक अवस्था अथबा दुरवस्था उन्होंने अपनी
आंखों देखी है । परन्तु देखी है सरकारी ऐनक लगा कर ।
प्रसिद्ध अथशास्री माशंल साइव के दिखाये हुए पथ के पथिक
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