करो या मरो | Karo Ya Maro
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.89 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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सत्यदेव विद्यालंकार - Satyadev Vidyalankar
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सरदार राम सिंह रावल - Sardar Ram Singh Rawal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डर श् ट् पिट्रोह की चिंगारी १२९० में सुचगी हुई विदोह की चिंगारी के साथ जिस मारतीय स्झण के थांखें खोली हैं श्र अपने [अस्तित्त्र की कीसत को छुछ ध्ाँका है उसने अपनी इन झांखों से भारतीय राजनीति शरीर श्रन्तर्राष्ट्रीय साजनीति के रज्ञ-मव््य पर खेखे गये कई नाटक देखे हैं । उनमें से सबसे बड़े नाटक का एक पढारषेप छसी पिछले ही वर्षों में छुआ है । कला तक सी जो दुनियां कितमे दी छोटे-बढ़े टुकड़ों में बटी हुई थी कह ध्रांज एक विश्व-पब्च्यायत के रूप में सजठित होती जा रही है 1 दुनिया के सिक्ष- मिश्र देशों की दूरी घर उनको एक दूसरे से दूर रखने याला अन्तर प्राय मिंदलान्सा जा रहा है । मदायुद्ध के विनाश का पहलू कितना भी अयानक क्यों न हो ौर उसका शमिशाप . कितना थी सीषण क्यों न मे दो किन्तु उसकी देन श्र उसका सरदान भीं कुछ कम सदर नहीं इखते। मददायुद्ध के लिये किये गये बेज्ञानिक शाविष्कारों ने ही दो दुनिया की दूरी अर अन्तर की दूर करके सार विश्वकों एक संघ में परिणल करने का कंछ दलका-सा झामास उपस्थित कर दिया है 1. मसथ उपस्थित फरा देने चोली अणु-शक्ति शरीर महाविनाश के साधन बने हुए राकैट की सिलाकर शाज छुस सीक के लौंग... त्वन्द्रखोक में पहुँचने की. योजनायँ भा रहे हैं। ाश्यय नहीं कि किसी दिन सारे .लह्मांड में शाना-माना शुरू दो जाय सौर राज का चिंश्व-संघ माली . बंहांड-संघ की सूमिका
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