भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के क्रन्तिकारी आन्दोलन में सरदार भगतसिंह की भूमिका | Bhartiya Swadhinata Sangarsh Ke Krantikari Andoloan Me Sardar Bhagat Singh Ki Bhoomika
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
208.22 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कि क्रान्ति में शासन व्यवस्था के स्वरूप, संस्थाओं, मूल्यों में आमूल परिवर्तन होता
है। क्रान्ति तभी सार्थक होती है जब सम्पूर्ण समाज के मूल्यों, उद्देश्यों एवं
राजनैतिक प्रक्रियाओं में आमूल परिवर्तन आ जाय |
जहां तक भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रश्न है- यह आन्दोलन
भारतीय जनमानस तथा ब्रिटिशि सरकार के हितों के बीच विरोध का परिणाम था ।
इसमें कांग्रेस का अंहिसात्मक आन्दोलन तथा क्रान्तिकारी गतिविधियां दोनों शामिल
थीं। राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रारम्मिक नेता हितों के विरोध को अच्छी तरह जान
रहे थे। वे यह भी जानते थे कि भारत अल्प विकास की प्रक्रिया से गुजर रहा है।
उन्होंने ब्रिटिशि शासन की आर्थिक नीतियों का विश्लेषण किया और जनता के
सामने इस रहस्य को रखने में सफल रहे कि भारत की गरीबी और दरिद्रता का
कारण ब्रिटिशि शासन ही है। इन नेताओं ने एक स्पष्ट उपनिवेशवाद विरोधी
विचारधारा का विकास किया और यही विचारधारा आगे चलकर राष्ट्रीय आन्दोलन
का आधार बनी |
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन संघर्ष की एक सोची समझी रणनीति
थी। इस आन्दोलन के विभिन्न स्वरूप थे, विभिन्न चरण थे जो आपस में एक
दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे, यद्यपि इनको सैद्धान्तिक जामा न पहनाया
जा सका था। सभी का लक्ष्य एक ही था- भारत को ब्रिटिश दासता से मुक्त
कराना | ब्रिटिशि शासन का भय भारतीय लोगों के साथ साये की तरह लगा रहता
था| इसी भय के विरोध में गांधी जी ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा था- डरो
मत | दे
अब यह प्रश्न उठता है कि भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अहिंसा
भूमिका थी? अहिंसा एवं सत्याग्रह का सिद्धान्त गांधी जी का कोई धार्मिक
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