बहोखाता तथा लेखाशास्त्र | Bahokhata Tatha Lekhashastr
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26.55 MB
कुल पष्ठ :
568
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दौहरा लेखा श्रणाली के सिद्धान्त 11
प (3) स्पाइसर एष्ड पेपलर--“'बक-कीरपिंग प्रणाली के सौदों
वह अ्रणाली है जिसमें यह साना गया है पद प्रत्येक ख जला का हा सी
एक खाते को सूल्य प्राप्त होता है और दूसरा वह जिसमें एक खाते को मुल्य देना पड़ता है । वह
खाता जो कि मूल्य पाता है ऋणी किया जाता है और दूसरा खाता धनी किया जाता है. ।”
(4) एम० जे० केलर--“एक उपक्रम में लेखांकन की सबसे अधिक सामान्य प्रणाली दोहरा
लेखा प्रणाली है । जैंसा कि नाम से स्पष्ट है, प्रत्येक सौदे के लिए की गयी प्रविष्टि के दो भाग होते
है, एक डेविंट और दूसरा क्रेडिट ।”
डेबिट और फ्रेडिट का आशय (वक्ष 0 60६ बाएं (बताए
डेबिट का आशय--डेबिट शब्द लैटिन भाषा के डेबिटम (26000) घन्द से बना है ।
इसका आशय “उनसे देय' (0ए८ ि फा81) है । वास्तव में डेविट लेखाकर्म का एक चिल्ठ (59001)
है, जिसका प्रयोग इसके नियमों को स्पष्ट करने एवं इन्हें फ्रियाशील करने मे किया जाता है ।
, केंडिट स्ग आशाय--क्रेडिट शब्द लैटिन भाषा के 'क्रेडर' ((ए८4८) णव्द से बना है । इसका
आशय “ख्याति से है । यह उसको देय (006 (0 (81) प्रकट करता है । यह भी लेखांकन में
एक चिह्न की तरह प्रयोग होता है। इसका प्रयोग लेसाकर्म मियमों को स्पष्ट करने एवं उन्हें
क्रियाशील करने में किया जाता है ।
दोहरा लेखा प्रणाली की विशेषताएँ ((ए0क18०65घं०5 0 0०प७16 टिएपिफ 59501)
(1) प्रणाली न्यायपुर्ण होना--जब कभी सौदा किया जाता है (चाहे वह क्रय-विक्रय से
सम्बन्धित हो या द्रम्य के लेन-देन से), तो उसमे दो पक्ष प्रभावित होते है अर्थात् प्रत्येक सौदे के
दो रूप होते हूँ 1 अतः दोनों रूपों का लेखा किया जाना न्यायसंगत है । यदि एक रूप का लेखा
किया जाय भौर दूसरे रूप को छोड़ दिया जाय तो उचित न होगा । व
(2) बैयकच्छिक व अबैयक्तिक पहलू का लेखा होना--हों सकता है कि एक सौदे के दोनों
पहुलु वैयक्तिक हों या दोनों पहलू अवैयक्तिक हों या एक पहलू वेयक्तिक हो भौर दूसरा भर्वेयक्तिक ।
दोहरा लेखा प्रणालियों में दोनों ही पहलुभों का लेखा किया जाता है । इसी कारण यह प्रणाली
वैज्ञानिक कही जाती है ! कार्टर के अनुसार, दोहरा लेखा प्रणाली का माशय वंयक्तिक एवं अवेयक्तितक
दोनों हो प्रकार के व्यवहारों के लेखों से है ।
(3) कुछ निश्चित नियमों के आधार पर लेखा करना-एयथ्यपि दोहरा लेखा प्रणाली में
प्रत्येक सौदे के रूप को ऋणी और दूसरे रूप को धनी किया जाता है, परन्तु इसका यह आशय नहीं
है कि चाहे जिस रूप को ऋणी और चाहे जिस रूप को धनी कर दिया जाय । ऋणी और धनी
करने के कुछ निश्चित नियम है, उन्ही के आधार पर कऋणी और धनी किया जाता है ।
(4) अंकगणित सम्बन्धी शुद्धता का ज्ञान प्राप्त करने में सहायक--चूँकि प्रत्येक सौदे के
एक पक्ष को ऋणी और दूसरे पक्ष को धनी किया जाता है; अतः ऋणी पक्ष का योग धनी पक्ष के
योग के चरावर होता है । इस तुलना से लेखों की अंकगणित सम्बन्धी शुद्धता का ज्ञान प्राप्त किया
जा सकता है । यह तुलना 'तलपट' द्वारा की जाती है। न
दोहरा लेखा प्रणाली के लाभ एवं दोष कक कि
दोहरा लेखा प्रणाली के लाभ --दोहरा लेखा प्रणाली डी से वे सब लाभ होते है जिनका वर्णन
पहले अध्याय में पुस्तपालन व लेखाकर्म के लाभों वाले शीर्षकों में किया जा चुका है | _
दोहरा लेखा प्रणाली के दोप--इस प्रणाली का महत्वशण दोप यह है कि इसके डेबिट व
क्रेडिट करने के नियमों को क्रियाणील करना अत्यन्त कठिन है । बहुत से सीदे ऐसे होते कर जिनके
दो रूपों (850605) में से एक में एक नियम और दूसरे में दुसरा नियम लगता है ! मत: दोनों प्रकार
के नियमों का लागू करना अत्यन्त परेशान करने वाला होता है । डेविट व क्रेडिट करने के लिलनों
तथा अन्य सम्बन्धित नियमों का पूर्णतया पालन किया जाना आवश्यक है । इनमें थोड़ी सी शुल होने पर
लेखे गलत हो जाते है। अतः इन नियमों में पूर्ण दक्षता पाने के लिए इसकी शिक्षा, मशिक्षण एवं
व्प थे जाने इयकता है । ऐसा न होने पर लेखे विश्वसनीय नहीं होते है !
1विहारिक ज्ञान कराये जाने की आवश्यकता है
लेखाकर्म का ढाँचा (80८०एए्ाप8 8घ्छ८६णाट) नव द
लेखाकर्मे के ढाँचे का आशय नेखाकर्म की सम्पूर्ण पुस्तकों, इनमें किये जाने वाले लेख दो
उस प्रारूप से है जिसके आधार पर लेखे किये जाते है । गा बन जरा डा द
लाभ-हानि सम्बन्धी एवं वित्तीय निष्कर्ष उतने ही अच्छे निकाले जा सकते हैं। ब्यवसाथ
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