सोना माटी | Sona Maati
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.44 MB
कुल पष्ठ :
464
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सौनामाटी / १७ देने वाली ठंडक क्या गर्मी की आग ओर दया वर्षा की बौछार अपने खेत में काम करते था बगीचे में गाय के लिए घास गढ़ते या वहीं अपनी छोटी-सी झोपड़ी में लेटेलेटे कवितायें भपनी वनाई कवितायें अकेले उच्च स्वर में गाते रहते हैं। रामरूप ने कुछ कवितायें लिख मंगाईं। वे एक कागज पर पेंसिल से टूटे-फूटे वर्णों में लिखी थी । उन्हें देव उसने सोचा इन कविताओं की तुलना में नयनाभिराम सज्जा में प्रकाशित और ऊचे दाम पर प्राप्त अनेक बहुप्रचारित काव्य कृतियाँ ऊंची दुकान के फीके पकबान से अधिक महत्त्व नहीं रखती 1 आश्चर्य था कि कठिनाई से अक्षर सीखकर स्कूल छोड़ देने वाला भर जीवन भर पेड़-पीधों की संगति मे रहने वाला व्यक्ति कुछ सामान्य उपमा- उ्लेक्षाओं की कलाबाजी के साथ भावों के सागर मे इस तरह गोते लगाता है। एक लड़के ने बताया कि वे अपनी कविताएं पेड़ों को फूलों को चिड़ियों को औौर आसमान के तारों को सुनाया करते हैं। भादमी उनकी कवितायें कम सुन पाते हैं पर जब कभी कानों में उनके स्वर उतरते हैं तो फड़का देते हैं। रामरूप सोचता है कविता लिखना कया स्कूल में सीखा जा सकता है? उसकी शिक्षा तो प्रकृति से प्राप्त होती है। उसके लिए कागज-कलम और स्याही भी आवश्यक नही । खुले हिदय-पठ पर प्रभात की कोमल किरणें विहग-शावकों के अनमोल बोल लिख जाही हैं । झिलमिल तारिकाओं की मौन-माधघुरी में सहल्न-सह्र भाव-गीत गुफित हीकर विजन-वीणा पर झंकत होते रहते है। पवन के इशारे पर धान की क्यारी सर-सर कर काव्य-पाठ करती है। अमराई से म्मेर-ध्वनि निकली है । इसमें क्या अनूठा काव्य-स्वाद नही है? यह मूल स्वाद छापे की पोधियों में कहा ? फिर आाज दो और हालत खस्ता है। कविता को मृत घोषित कर दिया गया । पुस्तकों में कला की ऊंची-ऊंची बातों की बहुस का प्रयोग भरा है । दुनिया को जनाने और बाजार बनाने की बातें हैं। रस छलककर बहता नहीं । उपयोग के लिए विरस को इन किताबों की शीशियों में वादों के मजदूत कारक लगाकर बन्द कर रखा जाता है। दिल सहज भाव से दिख नहीं जाता बल्कि उसे फाड़-फाड़कर दिखाया जाता है। पुराने संस्कारों का अभ्यासी रामरूप चक्कर में पड़ जाता है । खोरा का असली नाम तो बहुत सुन्दर है रामधीरज परन्तु उसमें लगा उपनाम खोरा काफी दिनों तक रामरूप को अटपटा लगता रहा । वाद में उसे लगा कि वास्तव में यह नाम स्वय में उनके प्रति उठने वाले प्रश्नों का समाधान है । इसमें चतुरानन की चूक की झलक है । खोरा जी अपंग हैं 1 कठिनाई से चल- फिर पाते हैं। अपनी एक कविता में दोरा शब्द के रहस्य का भी उद्घाटन किया है। गांव को भाषा में खोरा का भर्य है वह बड़ा कटोरा (यास्र तौर हे पीतल या फूल का) जिसकी पेंदी में गोड़ा नहीं होता है। उन्होंने लिखा कि चूंकि मेरे पर नहीं हैं अतः मेरा नाम खोरा है ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...