सती चरित्र चन्द्रिका | Sati - Charitra - Chandrika

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Sati - Charitra - Chandrika by श्रीयुत गोविन्द शास्त्री दुगवेकर - Shriyut Govind Shastri Dugavekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्तती पाती 1 छ जप लथाभ लाथताक तपतथाथथ्पाथ लाला लय लापता था धााथथाधाण आााा पलाी टीलीश था तथा हथलथलििय पाघंतीने श्रौर भी कठिन तपस्या फरनी श्ारम्भ फी | गरमीक्े दिनौमें सिरपर तपते हुए सूय्येके रहते छुपप पावंती श्रपनी चाय शोर छासिके कछुरड जलाकर पश्चतप च्तरने लगीं । उनकी छाँखोंकी चारो छोर काले निशान पड़ गये । उपवासके वाद वे पारणा करतीं छाकाशके जल झधवा चन्द्रमाकी किरणौसे । चरसात लगने पर जच नया जल श्रासमानसे गिरने लगा तव उनके शरीरसे गरमी याददर निकलने लगी । उन्होंने कुटीके झन्द्र रदना छोड़ दिया और झासमानके नीचे पत्थरसेप्ी चट्टान पर वे सोने लगीं । पू्के महीचेमें वे सारी रात पानीमें दी रद्दकर विता देती थीं । उनका मुखड़ा कमलकी तरदद पानीके ऊपर तिरता इुशा दिखलाई पड़ता था ।. पेड़ौके कड़े इप पत्ते खाकर दी रद ॒जानेसे लोग समभते हैं कि तपस्याकी दृद दो गयी । लेकिन पावंतीने यद्द खाना भी छोड़ दिया ।. पत्च्ेंको संस्कृतमें पणे भी कहते हैं । उन्दोंने पत्ते खाना भी छोड़ दिया इसी लिये उनका नाम छापा पड़ गया। चयड़े चड़े तपस्वी भी इतना कठोर न्नत नददीं पालन कर सकते 1 (५) इन्हीं दिनों पाचंतीके झाश्रममें पक जटाधारी झा पहुँचे । इस चार पावंती की श्रसि-परीक्षा थी । जटाधघारीका चेदरा वड़ा सुन्दर था। बचे झाश्रममें श्राकर अतिथि हुए । पावंतीने उनका सत्कार करनेमें कोई चांत उठा नहीं स्क्खी | अब नो जटाधारी बावा खूब जमकर चेठ रहे धर लगे या राग अलापने-- कहिये श्यापकी तच्रीयत कैसी है ? श्राधमका क्या दालचाल है ? चूचोमें पानी तो ठीकसे पहुंचता है न ? इत्यादि-इत्यादि फिर कहने लगे --तुस ऐसी खुन्द्री और राजाकी लड़की द्योकर भला यह तपस्या क्यों कर रही हो £? क्या किसी घरकी इच्छासे ? सुभे तो डुनियामें .पेसा कोई युवक नहीं दिखाई देता जिससे तुम व्याद करना चादो




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