चंद्रगुप्त विक्रमादित्य II | Chandragupta Vikramaditya II
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
66.41 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गंगाप्रसाद मेहता : Gangaprasad : Mehata
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १० )
. विक्रमादित्य के समय के शिलालेखों; सिक्कों तथा पूवापर इतिहास के पय-
. वेज्षण से तत्कालीन ही अमाणित होती हैं । इस गुप्-कुलावतंस विक्रमा-
_ दिव्य के राज्य-काल में भारतीय प्रजा का जीवन सुखसय, शांतिसय, सदा .
_ चार और पुण्य में अमिरत था, जैसा कि हमें चीन के बौद्ध यात्री फ़ाहि-
यान के यात्रा-विवरण से ज्ञात होता है। कदाचित्ू अपने ही समय के
श्रमजीवियों के--इंख की छाया में बैठी हुई शालि के खेतों की रखवाली
करने वाली खियों के सुख-शांतिमय जीवन का सजीव चित्र--नीचे लिखे
सुंदर शब्दों में उंकित कर इस युग के कविशिरोमणि कालिदास ने अपने.
ही उदाराशय आश्रय-दाता सम्रादू का गुशगान किया हो--
इझुच्छाय निषादिन्यस्तस्थ गोप्तुर्गणोद्यम् ।
आकुमारकथोदूघात शालिगोप्यो जपुर्यश: ॥ [ रघु, ४, २० ]
.. 'राजाधिराजर्षि” चंद्रगुप् विक्रमादित्य का दृत्तांत विद्यमान ऐतिहा-
.... सिक साधनों से जितना कुछ उपलब्ध हुआ्आा है उस का विवेचन और विचार
_.. मैं ने यथाशक्ति इस पुस्तक में किया है । में ने इस में यदद सिद्ध करने का
_ यल्न किया है कि कुतुबमीनार के समीप के लोह-स्तंथ पर खोदी हुई चंद्र
_.......... की विजय-प्रशस्ति का न तो अथम चंद्रगुप्ठ से और न पुष्करण के राजा.
_.. चंद्रवमा से संबंध है, किंतु उस में चंद्र विक्रमादित्य की ही दिग्विजय का
तथा
.. स्पष्ट विवरण है । उक्त प्रशस्ति के सभी सारभूत कथन उस के राज्यकाल
_ के उत्कीणे लेखों से पुष्ठ और प्रमाणित होते हैं । उदाहरणाथ, उस के
. सिक्कों पर लिखा रहता है-- पडा न
ं . “क्षितिमवजित्य सुचरिलेद्विं जयति विक्रमादित्य
नरेंद्रचंद: प्रितश्रिया दिचँ जयत्यजेयों शुधि सिंदविकम: ।
.......... इनलेखों की और उक्त प्रशस्ति में
दर मृत्याँ कर्स जितावनीं गतवत: कीत्यों स्थितस्य क्षिती”-
_... “चंद्राहन समग्रचंद्सदशीं वक्तशियं चिश्ता'--
दा हर उत्कीण पंक्तियों की भाषा और भाव बहुत मिलते जुलते हैं
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