चंद्रगुप्त विक्रमादित्य II | Chandragupta Vikramaditya II

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १० ) . विक्रमादित्य के समय के शिलालेखों; सिक्कों तथा पूवापर इतिहास के पय- . वेज्षण से तत्कालीन ही अमाणित होती हैं । इस गुप्-कुलावतंस विक्रमा- _ दिव्य के राज्य-काल में भारतीय प्रजा का जीवन सुखसय, शांतिसय, सदा . _ चार और पुण्य में अमिरत था, जैसा कि हमें चीन के बौद्ध यात्री फ़ाहि- यान के यात्रा-विवरण से ज्ञात होता है। कदाचित्‌ू अपने ही समय के श्रमजीवियों के--इंख की छाया में बैठी हुई शालि के खेतों की रखवाली करने वाली खियों के सुख-शांतिमय जीवन का सजीव चित्र--नीचे लिखे सुंदर शब्दों में उंकित कर इस युग के कविशिरोमणि कालिदास ने अपने. ही उदाराशय आश्रय-दाता सम्रादू का गुशगान किया हो-- इझुच्छाय निषादिन्यस्तस्थ गोप्तुर्गणोद्यम्‌ । आकुमारकथोदूघात शालिगोप्यो जपुर्यश: ॥ [ रघु, ४, २० ] .. 'राजाधिराजर्षि” चंद्रगुप् विक्रमादित्य का दृत्तांत विद्यमान ऐतिहा- .... सिक साधनों से जितना कुछ उपलब्ध हुआ्आा है उस का विवेचन और विचार _.. मैं ने यथाशक्ति इस पुस्तक में किया है । में ने इस में यदद सिद्ध करने का _ यल्न किया है कि कुतुबमीनार के समीप के लोह-स्तंथ पर खोदी हुई चंद्र _.......... की विजय-प्रशस्ति का न तो अथम चंद्रगुप्ठ से और न पुष्करण के राजा. _.. चंद्रवमा से संबंध है, किंतु उस में चंद्र विक्रमादित्य की ही दिग्विजय का तथा .. स्पष्ट विवरण है । उक्त प्रशस्ति के सभी सारभूत कथन उस के राज्यकाल _ के उत्कीणे लेखों से पुष्ठ और प्रमाणित होते हैं । उदाहरणाथ, उस के . सिक्कों पर लिखा रहता है-- पडा न ं . “क्षितिमवजित्य सुचरिलेद्विं जयति विक्रमादित्य नरेंद्रचंद: प्रितश्रिया दिचँ जयत्यजेयों शुधि सिंदविकम: । .......... इनलेखों की और उक्त प्रशस्ति में दर मृत्याँ कर्स जितावनीं गतवत: कीत्यों स्थितस्य क्षिती”- _... “चंद्राहन समग्रचंद्सदशीं वक्तशियं चिश्ता'-- दा हर उत्कीण पंक्तियों की भाषा और भाव बहुत मिलते जुलते हैं




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