भारतेन्दु युग | Bharatendu Yug

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द् भासतेन्छु-युम सकता ह इस विषय मैं झतुमति प्रकाश करके अजुमूद्दीत करेंगे | इसके थाद उन्दोने वे दिपय दिये जिन पर चदद ग्राम-गीत लिखा जाना व्यावश्यक समसते थ। याल-विवाह से हानि जन्मपत्री मिलाने की अशास्त्रता चालकों की शिक्षा गरेसी फेशन से शराब की श्ादत अणहत्या फूट और बेर वहुजातित्व और चहुमक्तित्व जन्मभूमि इससे रनद और इसके सुवाएने कंए आवश्यकलता का बर्सन नशा झदात्त स्पदेशो- हिन्दुस्तान की वस्तु दिन्दोम्तानियों को ब्यवद्दार करना-- इसकी ्ावश्यकता इसके शुण इसके न होने से दानि का यर्गन शादि । इस विपय-सूचा से दी पता चज्ञणा कि भारेस्दु देश के राजनीतिक शान्दोलन की बहुत सो बातें पहले ही सोच चुके थे । समाज सुधार से लेकर स्वदेशी झान्दोलन तक उनकी दप्टि गई थी। थे देश की जनता में एक नवीन चेतना जमाना चाइदते थे जो मत्येफ क्षेत्र में उसे सजग रख शिक्षित जनता भी गीतों को सुनकर उन्हें कंठर्य कर लें श्रौर इस प्रकार यदद नवयुग की वाणी शिक्षित श्औौर अशिक्षित फंखो में समान रुप से गूँ ज उठे । साथ ही। जनता की सनोदृत्ति पदचानते हुए वे कोरी शिक्षा के विसाघो थ वे इस म्राम-सादिस्य को मीरस चना कार जनदा करा सन न फेर देना चाहते थे । उन्दोने शज्ञार मीर हास्य को भी उसमें स्थान दिया था 1 भारतेन्दु बाबू चाइते थे कि उच्च कोटि का सादित्य भी ऐसे ही बिपयों पर रचा जाय जिससे चद्द ग्राम-सादित्य के साथ एक सामझस्य स्थापित कर सकें । उन्होंने लिखा था-- यद्यपि यदद एक एक विपय एक एक नाटक उपन्यास व छाव्य आदि के प्रन्थ बनाने के थोग्य हैं दौर इन पर लग प्रन्थ वनें तो घड़ी दी उत्तम वात है पर यहाँ तो इन विपयों के छोटे घाटे सरल देशमापा मैं गीत श्र छन्दों की आावश्यकंता है. जो प्रथक्‌ पुस्तकाकार सुद्रित द्ोकर साधारण जनों मैं फैलाए जायेंगे। अन्त में सब लोगों से सददयोग की प्रार्थना करते हुए उन्होंने इस महत्वपूर्ण दिज्ञपि को समाप्त किया था। किन द्वारी संग्काएँ को दोइकर यदद नव चेदना श्रकट हो रही थी यह इसी चात




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