वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा | VaigyaniK Vikas Ki Bhartiya Parampra
श्रेणी : जीवनी / Biography, विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26.22 MB
कुल पष्ठ :
289
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा भी बड़ी पुरानी है जिसकी नीव वैदिक का में पड चुकी थी । यजुर्वेद मे एक स्थर पर ये वाक्य है-- घानावन्तें करस्मिणमपुपवन्तमुक्थिनम् । इन्द्र प्रातजुषस्व नर ॥ धान दाब्द का प्रयोग मुने हुए अन्न के अर्थ में (चाहे चावल हो जौ हो या और कोई अन्न ) होता रहा है। इसके आटे में दही मिलाकर करम्भ बनता है ( यदि धान को चिवडा माना जाय तो दह्दी और चिवंडे के योग से बने हुए को करम्भ मान सकते हैं ) । चावल या और किसी अन्न के आटे से अप्रप जिसे हम पूप या पुआ कहते है तैयार किया गया। यह पूप आजकल के पुए और बडे दोनों का अग्रज है | यज्ञ मे एक विदेष हृवि पुरोडाश कहलाती है जिसका उल्लेख अनेक स्थढछों पर है ( यजु० १९२० ) बविशेषतया कऋषग्देद २1२८ में ( अग्ने जुपस्व नो हृवि। पुरोडाण जातवेदः 9 । यह आटे या चावल की मोटी रोटी होती है । पय घृत और मधु वा मैंने इस स्थल पर उर्लेख नहीं किया । हमारे साहित्य का कोई भी काठ ऐसा नहीं रहा है जिसमे इन तीनों की प्चर्चा न रही हो । ऊपर के एक मन्र मे पय के साथ दधि छब्द का भी प्रयोग आया है। दूध से दद्दी जमाना और फिर दद्दी से थी निकालना यह पुरानी परम्परा है । दूध से सीधे ही मदखन निकार लेना यह आजकढ के युग की नई विधि है । दूंध से दह्दी तैयार करना आज हमें साघारण घटना प्रतीत होती है पर मनुष्यजाति ने अपना पहल जिमन कैसे प्राप्त किया होगा किसने दद्दी की विशेषता वा अनुभव किया होगा अं।र जामन के सम्बन्ध में प्रयोग किये होगे इसका अनुमान लगाना कटिन है। दही के मन्थन से घी निकालना यह भी कोई सरक कार्य नहीं है। मन्थन विधि से दद्दी से घी अरूग हो सकता है यह परिशान कोई छोटी घटना नहीं है। हमारी सबसे पहली मथनी किस प्रकार की रही होंगी इसका दम अनुमान आज नही कर सकते । इस प्रारम्भिक मन्थन-जन्न ने ही आजकल के विशाल सेट्रिफ्यूज-यत्रो को जन्म दिया । मघु और सरघा मधु के सम्बन्ध में चारों वेदों में अनेक ऋचाएं है। मधु ने समस्त आर्य्यजातिं के जीवन को कविता दी जिसने निम्नलिखित प्रकार के दा दो से प्रेरणा पाई -- मचघुवाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्घवः । माध्वीनं सनवोषधी॥ मधु- नक्तसुतोषलो मघुमत् पार्थिव रजः । मधु थौरस्तु न पिता ॥ मधुक्स उटलेख पय और सोम दोनो के साथ भी आया है। इन मत्रो में मधु दाब्द प्रत्येक स्थरू पर (१९) यज्ु० २०1२९ करसम ० १1१८७।१० दाणिदे। १ ६५७1२ । विठसन के मतानुसार करम्भ भुने जो के आटे ओर घी से बनाया जात। हें । (२०) ऋण 1९०७ ६-७ ट है
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