वैज्ञानिक विकास की भारतीय परम्परा | Vaigyanik Vikas Ki Bhartiya Parampara

Vaigyanik Vikas Ki Bhartiya Parampara by डॉ. सत्यप्रकाश - Dr. Satyaprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मैदिक कालीन प्रेरणाएँ डे चापता । अग्नि देवताओं में सबसे छोटा कहटाया और इसलिए सबसे अधिक प्यारा यद अतिथि माना गया ओर टसीलिए सबसे अधिक दसका सत्कार हुआ । मर्त्तटोक के मानव के पास सबसे अधि प्रिय दस्तु भी--इव । सामय से उससे दस अग्नि का समादर किया- परीवाधियतातिथिमू सेन वर्थयामति । ब्रद्य सू्रि से जो सम सूर्य का था सामय-सि में नदी स्थान अग्यि को रहा और इसीलिए जहाँ सू्यों ज्योतिय्योंतिः सूर्य कहकर सूर्य का स्रण दिया यहीं थिग्गि्यीति्योति- रग्नि भी उन्होंने कहा | अध्िन्मस्थन के सम्बन्ध में कक का एक मस्त्र टै भस्तीदमघिमन्थनमसस्ति श्जननं छतमू । पा चिद्पलीमामरा्नि मन्वाम पूर्वचा ॥ ( ३९९१ ) इस गरन में अिमस्थनस का अभिपाय ऊपरवाली कटी (अग्नि उत्पन्न करने की) अर उसके साथ संयुक्त दण्ट और दोरी से टै। लकटी के सम्पर्क में झाग पकड़ने के लिए थोड़ी झुष्क घास रखगसी नानी थी | (अधिगन्थनम्‌ ) अरण्याः उपरि निभेयं मन्धनसाधन भूत दण्डरस्पादिकमस्‌ | (प्रवननमो अग्निमाधन भूत दर्म पिर्जूलग--सावण] अन्न और खाद्य जिस भूमि पर सनुष्य ने अपने को पाया उसका सोम उसने बसुस्घरा संखा । इस भूमि से उसने अपनी उदराग्नि को ठान्त करने के लिए अन्न की यानना की । आन हम बीसवी चताव्दी के प्राणी मनुष्य के उस आधित्कार का सहत्त डानुभव करने में सर्वथा असमर्थ ६ जिसने मनु्य को जंगल में निकाल कर डास्य-पूर्ण खेतों का स्वामी बनाया । आज हमारे प्रिय शन्नगेहूं चावल गवका ज्वार जो चना आदि है । ये अन मनुष्य ने खेती में अपने लिए तैयार किये । कही भी प्रकृति में इन जनों के जंगठ नदी पाये जाते । मनु ने अपने खेत के लिए यव या धान का प्रथम थीज कहों से प्राप्त किया होगा उसे गेहूँ या नने वा प्रथम पधा कहों से लाना पड़ा होगा उसे कैसे यदद विश्वास हुआ होगा कि छोटे से इन पीधी के सहारे संमस मानवभाति का भरग-पोपण होना राम्भय है वह कौन तस्‍वदर्णी रहा होगा जिसने अनेक असफल प्रयोग के अन्तर इन अचेा की खेती मे सफलता प्राप्त की १? सदर या छाखें वर्षीं की परम्परा के वाद अर इतने दिनों के अनुमवों के अन्तर कया हम आज अपने लिए एक नवीन जन की खोज बर सकते हैं क्या यह आदचर्य नहीं है कि सम्यता जोर संस्क्ति के इतने विकास के वाद भी हम अपने दास्या वी पुरातन परम्परागत सूनी को किचिन्मात्र भी विस्वृत नहीं कर पाये हैं। इन दास्यों की सबसे प्राचीन सूची हमारी परम्परा में जो प्राप्त है चद यपुर्वेद के निम्नलिखित मन्त्र में हे (८ ) कक ६1१ दू1१ ३ ऐतरेय ५1१६ (९) चूदच्छोचा यचिप्स्य चर ० दु। १ 1११ (१०) यज्ु० दे19 (१५) यजु० श९




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