वस्त्र शिल्प विज्ञान का परिचय | Vastra Shilp Vigyan Ka Parichay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१०. ................................'... सत्र शिल्प-विज्ञान (8086) अथवा बहुलड़युक्त (91४) चिकना. अथवाँ खुरदुरा, अधिक बलयुक्त (पंडाए1# फिमेड6) अथवा कम बल खाये हुये (10056] (४05९४) हो सकता है त् जज ..... प्रकृति में जीव जन्तुओं. से प्राप्त होने वाले एवं वनस्पति जगत से प्राप्त होने वाले तन्तुओं की कमी नहीं; किन्तु उनमें से. कुछेक ही ऐसे हैं जो कपड़ा उत्पादन के उपयुक्त पाये जाते हैं । वस्त्र उद्योग के लिये बढ़िया तन्तु वे हैं जिनमें क गुण हा। का ० ि क की _ सूत निर्माण के लिये तन्तुओं (फिट) में पर्याप्त दृढ़ता (इघ्िएंटा। -..'अ्लाइ) तनावन्सामध्यं (पक&ाडा[ध-इपटाइुए ) अवशोषकता (औ95002ा0%४) _आनम्यता (सांधाणापफि),. प्रतिस्कन्दता (८५1८०४) संसक्तिशीलता (008६० ए6४5); प्रत्यास्था (छाश5घंण15), लचीलापन, (द्शांछापरंकफ) कोमलता तथा सूक्ष्मता (5प़िट55 एटा 55) चमक तथा कांति ([.प58267) तथा पर्याप्त लम्बाई का होना आवश्यक है । इसके अतिरिक्त तन्तु (छाशा&७) अधिक महूँगे भी नहीं होने चाहिये, क्योंकि महँगे तन्तुओं से बनाये गये कपड़े बहुत महूँगे पड़ते हैं, जोकि जनता की वस्त्र थी माँग की पूर्ति पूर्ण रूप से नहीं कर सकते । विशेषकर उन प्रदेशों में जहाँ के गों की प्रति, व्यक्ति आय दर (?87 0518 ता100 116) बहुत कम है, वह वस्त्रों की आवश्यकता की पूर्ति. करने में असमर्थ रह जाते हैं। तन्तुओं की पृतति पर्याप्त. ह मात्रा में होने से वह आर्थिक दुष्टिकोण से सस्ते पड़ते हैं । कर तन्तुओं की लम्बाई को ध्यान में रखकर उनका . मुख्यतः दो प्रकार से वर्गी - करण किया जाता है, जोकि निम्न सारणी द्वारा स्पष्ट है-- कनता। हि (१) दीर्घाकार (२) लघु आकार एक पक री (अदा (क) एकरेशीय तन्तु (ख) बहुरेशीय तन्तु पा जाय (नणाणणिकाादए) (ऐवप्रप8प्राट0) ही हक . ज दे ८... ८ ) दीर्घाकार (रं18 पा) वें तनतु (पिशा८5) हैं, जो मीटर में नापे जाते हैं, जिन्हें काटकर (४0216) तस्‍्तुओं में परिवर्तित किया जा सकता है, अथवा ग्रे ' नोठ- -रेशा उद भाषा को शब्द है, जिसे हिन्दी में तन्तु कहते हैँ। डे दे पं




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