भारतीय चित्रकला | Bharatiya Chitrakala
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.39 MB
कुल पष्ठ :
407
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मुगल दोली का विकास औरंगजेब के ज़माने तक होता रहा । औरंगज़ेब के दरबार में चित्रकार रहते थे और थे चित्रांकन भी करते थे । मगर उनमें पहिलें जंसी प्रेरणा अब नहीं थी । औरंगजेब की उदासीनता के कारण चित्रकार भी अपना-अपना आश्वयदाता छुँढने के लिये दे के विभिन्न अंचलों में बिखर गये । यहीं से मुगल शली के पराभव का युग आरम्भ होता है। हाँ इस समय भी दक्षिण में बीजापुर गोलक्ण्डा आदि राज्यों में मुसब्विरों की प्रतिष्ठा यथावत् बनी रही । राजपूत और मुगल दैली में स्वभावत भिन्नता थी । कारण यह था कि मुगल शेली का विकास ईरानी दली के अधीन हुआ परन्तु राजपूत झेली का विकास स्वतंत्र ऊुप से हुआ । श्री गरोला का कथन है मग़ल शेली के चित्र राजसी तथा सामन्ती परंपराओं स प्रभावित और यथाधंवादी हूं किन्तु राजपूत झेली के चित्र कल्पना प्रचुर तत्कालीन जनवादी विचारों से संयुक्त हैं और उनमें रूमानीपन है ।. . . . ...... मुराल कली के चित्रों का विषय प्राय राज उद्यान राज परिवार राज दरबार और युद्ध आदि क॑ दृश्यों का चित्रण करना था । किन्तु कल्पना-प्रचुर राजपूत शली के चित्रों का विषय ग्रामीण जन-जीवन का चित्रण काव्यमय प्रेमकथाओं लोककथाओं और धामिक रीति- रिवाजों से मुख्यतया संबद्ध रहा हूं । मुगल चित्रकला को ज्ञासकों ने प्रश्नय दिया और उसके विकास में उन्होंने पूरी रुचि दिखायी । यह उनकी सहज उदारता और कला इम का ही परिचायक था। मुगल चित्रकला का भारतीय चित्रकला की विभिन्न शैलियों में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । मुग़ल और राजपूत दोली की ही भींति पहाड़ी शेली भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हे जम्मू गढ़वाल पठानकोट कुल्लू चम्बा वसौली काँगड़ा गूलेर और मंडी आदि तक पहाड़ी शैली का विस्तार रहा है। अठारहवी शताब्दी में इस इंली का विकास हुआ और बीघ्य टी यह देली अपने सर्वोच्च सोपान पर पहुँच गयी । पहाड़ी णेली में ही वे समस्त केलियां सन्निहित हू जिन्हें उनके स्थानीय नामों से जाना जाता हूं । काँगडा दोली को गलर और बसौली शली के कलाकारों से अत्यधिक सहयोग मिला । उस पर राजपत और मुग़ल शैलियों का भी प्रभाव अवध्य हें । समस्त पहाड़ी शलियों में काँगडा शेली का सबसे महन्वपूर्ण स्थान हे । काइ्मीर बसौली और चम्बा शेलियों का विकास कुछ पृथक हुआ मगर उन्हें सामान्य पहाड़ी शली के अन्दर ही मानना समीचीन होगा । कारमी र देली को अन्य पहाड़ी शैलियों से प्राची न माना जाता है । काइमी र शेली में समन्वयमू लक आदर्शवाद हू । यहीं उसकी विशेषता है। बसौली झोली में किसी सीमा तक काइमीर दोली का प्रभाव लक्षित होता है । पहाड़ी बेली की गढ़वाल शाखा का जन्म पन्द्रहवीं शताब्दी में हो चका था । इस आरम्भिक काल के चित्रों और चित्रकारों के संबंध में बहुत कम जानका री मिलती है । इसके बाद अठारहवीं शताब्दी के मध्य में फिर गढ़वाल होली की नवोझ्नति आरम्भ हुईं । गढ़वाल दोली पर काँगड़ा एवं गुलेर घेली का भी ध्रभाव पड़ा है । मध्य प्रदेश की चित्रकला का इतिहास तो बाघ के रुफाचित्रों से हो आरम्भ हो जाता है 1 इसके बाद ग्यारहवीं शताब्दी में हमें चित्रकला के कछ अवदष मिलते हैं। ये बीना-भिलसा स्टेदान के बीच उदयेरवर अथवा नी लकण्ठेद्वर के मन्दिर में हैं । बारहवीं से चौदहवीं झताब्दी के बीच यहाँ जेन शैली का प्रभाव रहा । मध्य प्रदेश के दतिया ओरछा ग्वालियर आदि रियासतों में विभिन्न चित्र प्राप्त हुये हैं । इनमें ग्वालियरी शेली का महत्त्व सर्वाधिक हे । हमने बिहार की सरगुजा रियासत में स्थित जोगीमारा चित्रों की चर्चा की है। नालंदा के बौद्ध
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