ध्यान से आत्म - चिकित्सा | Dhyan Se Aatm-chikitsa

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Dhyan Se Aatm-chikitsa by दुर्गाशंकर नागर - Durgashankar Nagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ध्यान से झात्म-चिकित्सा यह क्यों ? जैसे कहा जा चुका है. केवल. इसलिए : कि इस तक में सिहित सददान सत्यता की हमने अनुभूति नहीं पाई हे । . इसारा शरीर एक रथ# हैं जिस पर इन्द्रियों के घोड़े जुते हैं; घोड़ों पर मन की लगाम लगी हुई है; लगाम सारथी- बुद्धि के हाथ में है । 'परम पद” का पथिक आत्मा,रथ पर सवार है। रथ के स्वामी पथिक ने सारथी को आज्ञा दी कि अमुक स्थान को. प्रस्थान करना है। सारथी ने लगाम को मटका दिया, घोड़ों ने संकेत को समसा छोर बपने रुख का निश्चय किया । इस प्रकार रथ स्वामी के ब्घीन है, शरीर व्मात्म्प के अधीन है; किन्तु यह क्रम उलट गया है,। स्वामी तो सो गया है: सारथी ने किंकत्तंव्य-विमूद़ होकर लगाम को ढीली छोड़ दिया हे। 'छोड़ों पर कोई झंकुश नहीं है। रथ कहीं का कहीं जा रहा है। यों कहना चाहिए कि रथ स्वामी के वश में न होकर स्वामी रथ के वश में है, शरीर “ झात्मा के शासन में नहीं है घ्पत्सा शरीर के शासन में हे । यदि में इस उलटे क्रम को पलट कर स्वाभाविक क्रम की स्थापना कर सकू, यदि आत्मा को जगाकर शरीर पर उसका शासन जमा सकू ; तो फिर उपद्रवों के लिए स्थान न रह जाय रोग-शोक पास फटकने ही न पावें। फिर रुग्ण वा स्वस्थ . होना मेरी इच्छा पर निभेर होगा. झौर क्योंकि मैं रुग्ण होना क#्त्मानं रथिने बिद्धि ... कश्रात्मान रथिने बिद्धि, शरीर र्थमेव ठ ! बुद्धि ठ लि हद सन: प्रग्रहमेव च (कठोपनिषत्‌ ) फा०--२ ७




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