विजय ध्वनि | Vijay-dhwani

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Vijay-dhwani by नरेन्द्र - Narendra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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,.. शहीद की मां के पति | भाज इकसौता पुम्हारा पुर रण मं कॉम : रो रही हो तुम, हिमालय के नयन भरने ले वह तुम्हारे ही मुकुट के ग्रागे बढ़ा वद्दे नहीं सोया, हजारों देश के पहुरी जगे वा है रोज भूरज, कया कभी नहीं माँ, न भ्रौसु ढाल उसने देश के हित प्राण त्या!




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