कड़वी मीठी बातें | Kadavii Miithii Baaten

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kadavii Miithii Baaten by नरेन्द्र - Narendra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नरेन्द्र - Narendra

Add Infomation AboutNarendra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ज्वाला परचूनी ज्वाला की उम्र काफी हो चुकी हे, करीब उनसठ$साल | पर वह रोज चार घड़ी के तड़के उठ जाता है--कुछ तो इसलिये कि वह अकेला है ओर घर का सब काम-काज खुद उसी को करना पड़ता हे, लेकिन खासकर इसलिये भी कि जब तक वह नहा धोकर कस्बे के छोर पर अपनी छोटी दूकान तक पहुँच नहीं जाता, पास पड़ोस के लोग अपने घरों के दरवाजे खोलना पसन्द नहीं करते । लोग सुबह-सुबह उसका मुंह देखने का जोखिम उठाना नहीं चाहते, कहते हैं वह करमहीन है । ज्वाला रोजी के मामले में करमहीन नहीं है। आज तक किसी के सामने उसने दो पैसे को भी हाथ नहीं पसारा। हमेशा अपने पाँवों पर ही खड़ा रहा है। ज्वाला के बचपन की बात तो अब अतीत की बात हो चुकी है। लेकिन जहाँ तक सुना है यही कि जब से माँ-बाप मरे, उसने किसी का सहारा नहीं तका और न कभी किसी का आसरा ही लिया | माँ तो ज्वाला के जन्म के दो महीने बाद ही मर चुकी थी और बाप भी ताऊन की पहली महामारी में उसे नो साल का छोड़कर चल बसे थे। ज्वाला को लोग मूलिया कहते हैं। मोहल्ले की बड़ी-बूढ़ियों का तो रोज का कहना है कि देखों तो वह बचपन में ही माँ-बाप को खागया। किन मुसीबतों में उसका बचपन बीता और किन मशक्कतों मं घिस- पिस कर वह बड़ा हुआ यह पूरी तरह से कोई नहीं जानता । क्षेकिन यह | १ ।ै




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now