श्रीनिवास ग्रंथावली | Shriniwas Granthawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45.44 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ ) करने वाला है इसका सब गुण उन नाटक देखने ही से उन पर प्रगट हो जायगा तर इसी भाँति प्रतिकूलता के बंधन से छूटकर श्रनुकूलता भूषण से भूषित होकर नाटक-द्शन रूपी झलौकिक कुसुम कानन में घूमने फिरने से श्रनिवचनीय श्रानंद पावंगे श्र उसके काव्यों के वायु के ( की ) ठंदी श्रौर सुगंधित भकोरों के उनके जी की कली खुल जायगी . नाटकों के श्रमिनय करने में जो स्वच्छुंदता होती है उसे छोड़कर उससे देश का कितना उपकार होता है कि इम लिख नहीं सकते . देखिये जो कि यदि एक बड़ा राजा वा कोई धनी श्रयवा कोई पंडित किसी बुरे काम में प्रबर्त होय तो उसको हम लोग समा में कभी शीक्षा न दे सकंगे श्रौर जो कुसंस्कार की दावाधि बहुत काल से प्रगट होकर हम लोगों के मंगलमय सभ्यता बन को जला रही है उस महादावाधि को हम लोग दोष कथन वारि से घर बेठे बुमकाना चाहैंगे तो कभी न बुरी . इसमें शब हम लोगों को कुशलता के उद्योग बीजों को श्रवश्य बोना चाहिए श्र वह किसी एक मनुष्य के प्रयल्न से झभी अंकुरित न होगी परंतु यदि नाटकों के अभिनय का शारंम हो जायगा तो यह सब कुचाल श्राप से झाप छूट जायगी श्र इसी माँति फि सब लोग श्रच्छी बातों से रुप न होकर इसके प्रचार में प्रयत्न करगे कवि-वचन सुधा १७ श्रगस्त १८७२ पृ० १६७-१६८ _. कुसंस्कारों और कुचाछों को दूर करने के लिए नाटकों के अत्यधिक प्रचलन की आवश्यकता ससझ कर सारतेस्ु नें अनेक छेखों ट्वारा नाटक रचने और अभिनय करने की प्रेरणा दी है । दूसरे हिंदी भाषा को पूर्ण सख्द्ध करने की दृष्टि से भारंतेस्दु ने नाटकों का. एकॉत अभाव देखकर उसके लिखने का स्वयं श्रयत्न किया और दूसरों को भी प्रेरणा दी रत्नावछी . ( सं० १८६८ ) की भूमिका में वे लिखते हैं
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