पाषाण नगरी | Paashhaand- Nagarii

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पंडित शिव सही चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले के देवरी नामक गांव में हुआ था | इन्होने कई पुस्तकें लिखीं किन्तु समय के साथ साथ उनमें से कुछ विलुप्त हो गयीं | ये एक अमीर घराने से थे और बचपन से ही कला में रूचि रखते थे |
इनके वंशज आज जबलपुर जिले में रहते हैं और शायद ये भी नहीं जानते कि उनके दादाजी एक अच्छे और प्रसिद्ध लेखक थे | इनके पौत्र डॉ. प्रियांक चतुर्वेदी HIG 5 शिवनगर दमोहनाका जबलपुर में निवास करते हैं |

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अस्तावना के के & भारतवष ग्रामों का देश है । हमारे ७५ प्रतिशत भाइयों का निकट- तम सम्बन्ध ग्रामों से रहता है। स्वतप समय के अन्वेषण ने सिद्ध कर दिया है कि देहात के इस अक्तर-ज्ञान-विहीन ब्रहत्‌ समाज में ग्रामगीतों कहावतों लोक-कथाओं श्रनुश्र तियों पहेलियों और श्रनुभव वाक्यों के रूप में एक बड़ी साहित्यिक निधि छिपी पड़ी है । वे इस निधि को एक सुदीघ काल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी श्र ति-झ्रनु्न ति के श्राघार पर सुरक्षित रखते चले आरा रहे हैं । में लगभग १५-२० वर्ष से लोके-कथाओं के संग्रह का कार्य कर रहा हूँ । इस प्रांत के झनेक ग्रामों में मुके इन कहानियों के सुनने का श्रवसर मिला दे । ये कहानियां इधर सवंत्र प्रचलित हैं । जो कहानी एक श्रादमी के मुह से सुनते हैं वही कहानी सुदूर ग्रामवासी तथा सुदूर जनपद्वासी के मुह से सुनने को मिलती हे । ये कहानियां इस प्रांत घुन्देलखरड में एक बहुत लम्बे समय से पीढ़ी-दर-पीढ़ी से जीवित चली श्रा रही हैं ध्यौर वे इस भ्रूखण्ड के रीति-रिवाज़ तथा संस्कृति के सर्वथा श्रनुकूल हैं । दूसरे शब्दों में कहा जावे तो वे बुन्देलखण्ड की श्रात्सा को दरशाती हैं श्रीर उसका प्रतिनिधित्व करती हैं इसलिए मैंने इन कहानियों को बुन्देलखंडी नाम दिया है । कथा-सादित्य में ये लोक-कहानियां श्रपना विशेष स्थान रखती हैं . मानव समाज में उसके जीवन के उषःकाल से कथा-प्रेम उत्पन्न करने क। श्रय इन्हीं कहानियों को दिया जा सकता है । श्रन्वेषण से जाना जात है कि प्राचीन-से-प्राचीन श्रसभ्य जातियों में भी कथा-कहानी कहने-




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