कृष्णप्रिया | Krishnapriya
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.46 MB
कुल पष्ठ :
754
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श् सुष्णुप्रिगफा षुधी-कीरे उठाई ऋाप- ग्रीवा । मेलनराधि सुदित हे जीवा॥ तदपिन जगा सददुमुनिध्यानी ।गयोसप तबनिज रजधानी ॥ शीशमुकुट घरघरा उतारी । उपजों ज्ञान शोच भो भारी॥ जातरूप मममुकुट विशाला । जहैंनिवसतकलियुग सबकाला ॥ बेर सम्हारि झपीय बनायों । तेहिखिल अघमकर्म कंरवायों ॥ दो आसी बिप सुबस्वकरहें सुनि गल मेलो जाय । भयोदीष अस मितिनजहि भूप हृदय अकुलाय ॥ बरणु धर्मत्रिय धन परिवार । किमिन नश्योयड आजहमारा॥ धृकहों. जीवत ऋषि इखदाई । का जानिय कबयह अघजाई॥ इतबसुघेश शोक दविमाहीं । पेरतथाह लगत जनुनादी ॥ उत बालक खेलत तेहि काला । सनि तट जातभये मनिभाला॥ ऋषिकंघरअहिसत कविलोकी ।चकितविक ल भेजि मिनिशिकोकी सम्मत करे. परस्पर से । तदापंघीर नहिंतिन तनहोई॥ शक कहिसि कौशिकि सीरितीरा । इनकर सुतखेलत सुनुबीस ॥ ताहिकहों कोउ सुनियक धावा । मुनिसुतदंदमध्य चलिझाव॥। दो० तह श्रंगीन्डषि समुदमन करत खेल जिमिबाल । कहिंसि जाय तेहि बालते यहचीरित्र तेडिकाल ॥ का खेलत अशोच तें भ्राता । चलुमम साथदेख निजताता॥ वाके कैठ से. मरूतडारा । नपकोइू हों मेन निहारा ॥ सुनत सकोप भयो ऋषि कैसे । वीरभद्र विधिसुत मषजेसे ॥ अरुण चश्तु भूकुटी मे बॉकी । यथाज्रिपुर्लखिनयोपिनाकी॥ उठे रोम थर हरेउ शरीरा । कही महामूनि गिरा मीरा ॥ अबकलि- सूपभये _अभिमानी | घनमद मते झंघ ज्ञानी ॥ देहोंशाप ताहिददों आज़ । जिहि बशकालकीन्द यहकाजू ॥ झसकहि मुनि कौशिकि तटजाई। जलकर लें वोर्यो अकुलाई॥ दो ० . जेहिभ्रपति ममतात गल डास्मतकअहिलाइ | दिवससातवेंताहिकई सपे अवशिडसिखाइ ॥ देझ्सशाप जनक दिंग गयऊ । कंघरसपे निकारत भरयऊ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...