हिंदी महाभारत भाग 3 | Hindi Mahabharat Part 3

Hindi Mahabharat Part 3 by गणेश - Ganesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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. मद्दात्मा पुत्र को गद्दी पर बिठाकर युवराज बना दिया । शान्तनु के ने सच्चरित्र श्र सद्शुशों के कारण पिता को पुरवासियों को और परम परोक्रमी मद्दाराज शान्वनु निश्चिन्त देकर पुत्र के साथ सुख ग्स तरद चार व बीते | दिन राजा शान्तनु यमुनानकिनारे के वन में पहुँच गये । वहाँ एक की नाक में पहुँची । जिधर से वह सुगन्ध श्रा रही थी उसी श्रार झागे या बैढ़नेपरराजा को एक देवकन्या सी सुन्दरी एम नव मिल देख पड़ी ।. राजा नेउस कमलनयनी कन्या क ं से पूछा--सुन्दरी तुम कान हो ? किसकी बेटी हो? किसलिए इस बन में झाई हा ? उस युवती ने कद्दा--तुम्दारा कल्याश हो में दाशराज की बेटी हूँ। उन्हीं की ग्राज्ञा से मैं यहाँ नाव खेकर बटाहियों को इस पार से उस पार पहुँचाती हूँ | उसके शरीर से निकल रही दिव्य गन्घ को सूँघकर और उसके अनुपम रूप- लावण्य श्रौर दिव्य कान्ति को निहारकर राजा शान्ततु उस पर रीक गये . उन्होंने उस कन्या के पिता निषादराज के पास जाकर अपनी इच्छा प्रकट की श्र पूछा कि तुम मेरे साथ अपनी बेटी का ब्याह करने के लिए राज़ी हो या नहीं ? दाश- कन्या के जन्म के समय ही मेने निश्चय कर लिया था कि किसी देने में मु नाहीं? सद्दीं है किन्तु मेंने एक पग कर रक्‍्खा राजन आप सद्यवादी हैं। यदि आप मेरी इस कन्या को भार्या प्रतिज्ञा कीजिए मैं आपको अपनी कन्या दूँगा । झाप ऐसा तकता है? राजा ने पूछा--तुम्दारा क्या झभिपाय है ? स्पष्ट कंतेव्य जान पड़ेगा वच् करूँगा यदि मेरी शक्ति के बाहर होगा ने कहा--राजन इस भार्या के गर्भ से जो बेटा झापके हो वही ठे. आप श्र किसी रानी के पुत्र को राजा न बना सफेंगे नर




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