पाश्चात्य काव्यशास्त्र | Paschatya Kavyashastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.66 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ राम पूजन तिवारी बिहार प्रदेश के भोजपुर जिला अंतर्गत बड़हरा प्रखंड के गंगा तटवर्ती इलाके के परशुरामपुर गांव के रहने वाले थे। उन्होंने कठिन संघर्ष के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। डॉ राम पूजन तिवारी एक निम्न वर्ग के परिवार से आते थे। गांव में रहने के बावजूद डॉक्टर तिवारी ने अपने बुद्धि और विवेक के द्वारा कई किताबों की रचना की। आज के युवक उन्हें भूलते जा रहे हैं। इलाके के लोग आज भी उन्हें बड़े गर्व के साथ याद करते हैं। सूफी साहित्य के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा उन्हें कई स्वर्ण पदक, सिल्वर पदक और ताम्र पदक से नवाजा है।
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पाश्चात्य बालोचना का प्रारम्भ २१
घी और एरिस्टाटल में ताबिक्ता और वैनानिकता थी। प्लेटो ने कलात्मक
कतियो के अध्ययन में नीतिथास्वर और नैतिकता को प्रधानता दी थी लेविन
एरिस्टाटल ने उनके अध्ययन में सौन्दर्यशास्त्र बौर कलात्मक्ता को प्रधानता
दी । एरिस्टाटल कर मन वस्तुओ से भावों या विचारों (18625) त९़ पहुँचता
था और प्लेटो का भावों या विचारों से वस्तुओं तता1 इसका बर्थ यह हुआ कि
भावों या विचारों मे जो जुछ यथार्द है दह वस्तुओं वे विपनेषण द्वारा प्राप्त पिया
हुआ यपाय हैं; जैसे किसी वृक्ष-दिगेष को विशेषताओं वा ज्ञान प्राप्त वर उस
घृक्ष वी जाति की विशेषताओं की जानकारी प्राप्त वी जाती है । प्लेटो वे लिए
ठीक इसके विपरीत है। वह भावों या विचारों के यथा में दस्तुओ के यदार्थ
तर पहुंचता है ।
एरिस्टाटल का बहना है कि वि या तो प्रतिभा लेवर ही जन्म ग्रहण बता
है भौर अपनी बुद्धि या सहदयता के बल पर अपने विपय के साथ एवाकार हो
मकता है अयवा उसमें एक थागलपन होता हैं जिसके सहारे वह अपने आप मे दूर
चला जाता है और ऊंचा छठकर भावोर्माद की अवस्था वो प्राप्त होता है ।
एरिस्टाटल यद्यपि बवि नहीं था, फिर भी उसने अपनी बुद्धि या सहृदयता के बल
पर ही कविता-सवधी समस्याओं को अत्यन्त निपुण भाव से सुलभाते वा प्रयास
विया है । एरिस्टाटल में एक ऐसो नि सगता पाई जाती है मि ज्ञान के शेप्र मे
जाकर यह बडे ठडे दिमाए से विचार परता है । बला, साहित्य, राजनीति आदि
पर विचार वरते समय उसने सम्पूर्ण रूप से अपने वो उन्ही में सीमित रखा है ।
अगर वह वाव्य पर विचार करता हैतो काव्य मे क्षेत्र से वाटर नहीं जाता ।
उसी प्रवार से नाटक पर विचार करते समय साटव वे शेयर में ही वह अपने वो
सी मित्त रखता है । एव ने साथ दूसरे को लेबर उसने गद्टमट्ट नहीं किया है, इस-
तिए बहुत-सी वातों से बहू उन झूलों से बच गया जिनसे प्लेटो अपने को नहीं या
सका । ज्ञान-विज्ञात मे नाना क्षेत्रों मे उसवा प्रवेश था इसलिए उसके पिचारो से
दिसी प्रवार वी सकीपंता नहीं आने पाई और व्यापत दृष्टि से देखो में वह
समर्थ हो सर । किसी विशेष सिद्धात्त या सतजाद बा प्रचार वरना उस
उद्देश्य नहीं था, अवरव सहन चुद्धि और विश्वेपण द्वारा वह ते्सागत परिणामों
पर पहुँचता था । काव्य, नाटक आदि दे सबंध से उसने कुछ सिद्धान्त स्थिर पिएं
हैं जिनमें आगे आते वाली पीडी वा मा्-प्रदर्शन टुआ है । वेंसे प्तेटो वे समान ने
उसने बवि-्ददय दी पाया था और न उतना बड़ा वट प्रतिभा-सपरन ही था ।
ध्लेटो प्रतिभादान था तया उसमे सर्जन की शक्ति थी । शरिस्टारत सी प्रतिसा
विश्येषण और थ्यवस्था वो और अधि शुरी हुई है । गत दिया थे, चारें से
काव्य हो था चिय हो एरिस्टाटल “सुन्दर साएता है और उन्हे बातरद देन वाती
मानता है 1 युरदर वो छोडडार वह उतरी बस्यना नहीं करता । सौन्दयं को वह
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