रीतिकालीन साहित्य का पुनर्मूल्यांकन | Reetikalin Sahitya Ka Punermoolyakana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेश | व ः. | ११ निहायत हुस्न में ओतार थी आओ कुल पंचार में खुँखार थी ओ। अथी यों पाक दामन पारसा नार नमाजां पंच ववतां होर जिक्र चार । कभी नागा नहीं करती थी अवसर चतुर सब औरतों में थी बिचित्तर । ््ट पर रद ऊँचा घूँघट न सारा मुँह को खोले न बाताँ शोखसिल शोखियाँ सूँ बोले । व लेकिन सरोकद नाजुक बदन थी सकल खूबाँ मने जादू नयन थी । कसान अबू निगाह खंजर पलक तीर अदा संफे दुधारा जुत्फ जंजीर । सरोपा नाजनी दिलदार दिलवर बला थी जुर्म थी जालिम सितमगर। कहाँ लग उस परोरू को मैं सराऊँ दिले आशिक सिरा कर क्यों जलाऊं । इस भाँति सल्रहवीं शताब्दी और उसके अनन्तर दखनी भाषा विशेष उत्क्ष से दक्षिण में प्रगति कर रही थी । उदू उूँ के साहित्यकार अमीर खुसरो को ही उदूँ का प्रथम कवि मानते हैं । इसका कारण यह है कि अमीर खूसरो ने ही सर्व॑ प्रथम फ़ारसी शब्दों का प्रयोग भाषा में कर उदूँ को साहित्यिक महत्व प्रदान किया । किन्तु मेरी हृष्टि से अमीर खुसरो खड़ी बोली हिन्दी (कौरवी जनपदीय भाषा) या हिन्दवी के प्रथम कवि हैं । _ उस समय दिल्‍ली मेरठ (कौरवी जनपद) की भाषा पर फ़ारसी और अरबी का प्रभाव पड़ने लगा था और उनके शब्द जनपदीय भाषा में अवतरित होने लगे थे । इस भाँति यदि फ़ारसी अरबी शब्द मिश्रित खड़ी बोली हिन्दी या हिन्दवी में पहेली या मुकरी साहित्य ही अमीर खुसरो ने लिखा तो वह किसी प्रकार उड़े साहित्य तहीं कहा जा सकता । अमीर खुसरो ने स्वयं काव्य में हिन्दवी या हिन्दी शब्द का प्रयोग अपने कोश-ग्रन्थ ख़ालिक़बारी में किया है -- मुश्क काफूरस्त कस्तूरो कपूर । हिन्दवी आनन्द शादी वो सुरूर ॥ संग पाथर जानिए बरकन उठाव । भर्प सी रां हिन्दवी घोड़ा चलाव ॥.




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