हरिवंशपुरण | Harivamsapurana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
59.38 MB
कुल पष्ठ :
1011
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). अस्तोवना च्दू
बर्द्धमानपुरकी थारों दिंशालओंमें जिन राजाओंका वर्णन जिमसेनने किया है, उनपर भी विचार कर
लेगा भावदयक है--
« है. इन्द्रायुण
स्व०, भोशाजीने लिखा है कि इन्द्रायुघ भौर चक्ायुव किस अंधक्ते थे, यह शात नहीं हुआ
परन्तु संभव है कि थे राठोड़ हों । स्व० चिन्तामणि विनायक बेखके अनुसार इन्द्रायुष मण्डि कुछका था
और उक्त बंदको वर्मवंदा भी कहते थे ।' इसके पुत्र चक्ायुघकों परास्त कर प्रतिहारवंदी राजा वत्सराजके
पुत्र भागभट दितीयने जिसका कि राज्यकाल बिस्सेट स्मिथके अनुसार वि ० थ० ८५७---८८रे हद । कन्नोजका
सान्नाज्य उससे छीना था । बढबाणके उत्तरमें मारवाइ़का प्रदेश पढ़ता है । इसका अर्थ यह हुआ कि कस्नोंज-
से लेकर मारवाड़ तक इन्द्रायुषका राज्य फैला हुआ था ।
श्रीवल्छभ
यह दक्षिणके राष्ट्रकूट बंधक राजा कृष्ण ( प्रथम ) का पुत्र था । इसका प्रसिद्ध नाम गोविन्द (दितीय)
था । कांबोमें मिले हुए ताझपटमें इसे गोविन्द न छिलकर बल्लभ ही लिखा है, अतएव इस विषयमें सन्देह
नहीं रहा कि यह गोविन्द ( हितीय ) हो था और वर्चमानपुरकी दक्षिण दिशामें उसीका राज्य था । कावी भी
बढ़वाणके प्राय: दक्षिगमें है । श० सं० ६९२ ( वि» सं० ८२७ ) का उसका एक ताज्पत्र भी मिला है ।
३. अवन्तिभूभ्तू वत्सराज
यह प्रतिह्ार बंधका राजा था गौर उस नागावलोक या नागभट ( द्वितीय ) का पिता था जिसने
भक्ायुघकों परास्त किया था । वत्सराजने गौड़ और बंगालके राजाओंको जीता था और उनसे दो दवेत छत्र
छोन लिये थे । आगे इन्हीं छत्रोंको राष्ट्रकूट गोविन्द ( हितीय ) या श्रीवल्लमके छोटे माई धर बराजने चढ़ाई
करके उससे छोन लिया था और उसे मारवाढ़की अगम्य रेतोली भूमिको ओर भागनेकों विवदा किया था ।
भोझाजोनें लिखा है कि उक्त वत्सराजने मालवाके राजापर चढ़ाई की और सालवराजकों बचानेके
लिए श्रुबराज उसपर चढ़ दौड़ा । ७०५ में तो मालवा बत्सराजके हो अधिकारमें था क्योंकि श्रूवराजका राज्या-
रोहणकाल श० सं० ७०७ के लगभग अनुमान किया गया है । उसके पहले ७०५ में तो गोविन्द (द्ितोय)
( श्रोवल्लभ ) ही राजा था और इसलिए उसके बाद हो प्रुवराजको उक्त चढ़ाई हुई होगी ।
उद्योतन सुरिने अपनी कृुवलयमाला जावालिपुर या जालोर ( मारवाड़ ) में तब समाप्त की थी जब
दा० सं० ७०० के समाप्त होनेमें एक दिन बाकी था । उस समय बहाँ वत्सराजका राज्य था अर्थात् हरिवंशकी
रचनाके समय ( वा० सं० ७०५ में ) तो ( उत्तर दिशाका ) मारवाह इन्द्रायुधके आधोन था ओर ( पुर्वका )
मालवा वत्सराजके अधिकारमें था । परन्तु इसके ५ अर्थ पहले ( दा० सं० ७०० ) में बत्सराज मारवाड़का
नधिकारी था । इससे अनुमान होता है कि उसने मारवाड़से हो आकर मालवापर अधिकार किया होगा और
उसके बाद घ्.वराजकी चढ़ाई होनेपर वह फिर मारवाइकी ओर भाग गया होगा । दा० सं० ७०५ में वह
अवन्ति या मालवाका शासक होगा । अवन्ति बढ़वाणको पूर्व दिशामें हैं हो । परन्तु यह पता नहीं लगता कि
उस समय अवस्तिका राजा कौन था, जिसकी सहायताके लिए राष्ट्रकूट घ्रुवराज दोड़ा था । श्रुवराज ( श०
से० ७०७ ) के लगमग गद्दोपर भारूढ हुआ था । इन सब बातोंसे हरिवंधकी रचनाके समय उत्तरमें इन्द्रायुष,
१. देखो, सी० पी» बैद्का 'हिम्दू मारतका उत्कर्ष : एू० १७५ ।
रे, म० म० ओोझाजीके अमुसार मागमटका समय लिं० सं० ८७९-८९० तक है।
३. इष्डियन ऐप्टिक्वेरो : जिस्द ५, प० १७६ ।
है. एपिप्ाफिसा इण्बिका : जिस्द ५, पृ० २७९ ।
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