राजस्थानी शब्द कोस खण्ड 1 | Rajasthani Sabad Kosh Khand I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झा | श्रनाजों बरतनों देवी-देवताश्रों योगासनों श्रादि के नामों एवं पारिभाषिक दाब्द भी लेने के लिए सम्बन्धित व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त किया गया है । विभिन्न विषयों के भ्रनेक दाब्दों के अर्थ एवं परिभाषा में जहाँ भी तनिक शंका हुई वहाँ विषय- सम्बन्धित विद्वज्जनों से बिना किसी ह्चकिचाहट के सम्पकं स्थापित कर दब्दों का भ्रथे या परिभाषा ज्ञात की गई । राजस्थाम में युद्ध एक प्रिय विषय रहा है श्रत युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अनेक प्रकार के श्रस्त्र-शस्त्र यहाँ पाये जाते हैं। विभिन्न शस्त्रागारों में जाकर प्राचीन झ्रस्त्र-दस्त्रों को देख कर उनकी वास्तविक परिभाषा इस कोद् में दी गई है । इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक व्यक्तियों की जीवनियाँ प्राचीन स्थानों एवं त्यौहारों का वर्णन भी यथा स्थान पर संक्षिप्त रूप में दे दिया गया है जो व्यक्ति विशेष अथवा घटना विशेष की पुरी जानकारी देने में सहायक ही सिद्ध होगा । शाब्दा्थ के साथ साथ व्यापक रूप में प्रयुक्त होने वाले मुहावरों तथा कहावतों को भी यथा स्थान देने का प्रयत्न किया गया है । इतने पर भी में यह कहने का साहस नहीं कर सकता कि राजस्थान में प्रचलित भ्रथवा राजस्थानी साहित्य में प्रयुक्त सभी शब्दों का समावेश इस कोदा में हो गया है । यद्यपि वंसे ही किसी भाषा के समस्त दाब्दों का संग्रह एक महान कठिन कार्य है तथापि किसी जीवित भाषा में दाब्दों का झागम निरं- तर होता ही रहता है । कोश अधिकतम पुणता प्राप्त कर सके इसी उद्दृद्य से मेरी श्रोर से प्रेस में पृष्ठों के छापे जाने के समय तक मिलने वाले नवीन दाब्दों को कोश में अंकित करने का प्रयास चलता ही रहा । प्राचीन राजस्थानी में कुछ ऐसे झटपटे दाब्दों का प्रयोग मिलता है जिनका प्रयोग बाद के साहित्य में नहीं हुमा श्रौर न होने की भविष्य में झ्राद्या ही है। कई बार तो ऐसे दब्द शभ्रपने मूल झथं से भिन्न झर्थे में प्रयुक्त होते हैं । कई कोश कारों के मत से इस प्रकार के दाब्दों को कोश में स्थान नहीं देना चाहिए । तथापि प्राचीन राज- स्थानी के श्रध्ययंन एवं उसे ठीक तरह समभने के उद्देश्य से ही ऐसे दाब्दों को इस कोश में स्थान दिया गया है । जीवित भाषा होने के फलस्वरूप स्थानिक प्रभावों के . कारण इसमें अनेक प्रकार के परिवतंन एवं रूफन्तर होते रहते हैं तथा नए- देखो ्कोश कला--रामचन्द्र वर्मा प० २८ २४३ राजस्थांनी सबद - कोस नए दब्द मिलते रहते हैं । इस कोश में कुछ ऐसे विदेशी दब्दों को भी स्थान दे दिया है जो साहित्य एवं लोक-व्यवहार में रूढ़िग्रस्त हो चुके हूं श्रौर हमारे व्याकरण के नियमों से झ्रनु- शासित होते हैं । ऐसे दाब्दों के झ्रागे कोष्टक में उनके शुद्ध मुल रूप भी प्रस्तुत कर दिए गये हूँ. । दाब्दों की प्रामाणिकता एवं भ्रथें की स्पष्टता का ध्यान रखने के फलस्वरूप दाब्दों के साथ उदाहरण भी देने का निश्चय किया गया था । किन्तु यह निइचय करना वस्तुत एक. कठिन कार्य था कि किन-किन दाब्दों के उदाहरण दिए जायें श्र किन-किन दाब्दों के उदाहरण छोड़ दिये जायें। इस सम्बन्ध में कोई निश्चित सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती । दाब्दों के कम प्रयोग एवं कम प्रचलन के कारण तो उनके उदाहरण दिये ही गए हैं परन्तु झ्रनेक दाब्दों के ठीक उपयोग को बताने के लिए भी उनके उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं । साथ-साथ ऐसे शब्दों के भी उदाहरण दे दिए गए हैं जिनके सम्बन्ध में हमारे दृष्टिकोण से किसी प्रकार की श्रापत्ति या आशंका हुई है। दिए गए उदाहरणों के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि कहीं-कहीं वे लम्बे हो गए हैं । शब्द-कोदा का एक उद्देदय उसे उपयोग में लेने वालों की जिज्ञासा पूरा करना भो है भरत उदाहरण में उतनी ही पंक्तियाँ दी गई. हैं जिनसे सम्बन्धित शब्द का झ्रथे स्पष्ट हो जाय फिर वह केवल एक वाक्य के रूप में है भ्रथवा उसका विस्तार चार-पांच पंक्तियों में हो गया है। कुछ दाब्दों के भ्रथ विशेष की पुष्टि के लिए यद्यपि उदाहरण में गीतों की एक दो पंक्तियाँ दी गई हैं परन्तु केवल उन पंक्तियों से भ्रथ॑ स्पष्ट नहीं होता । कारण यह है कि दब्द के उस विशेष श्रर्थ का सम्बन्ध पुरे गीत से होता है। राजस्थानी के डिंगल गीतों में यह परम्परा है कि उनमें शब्द की पुनरावृत्ति नहीं होती किन्तु श्रर्थ-चमत्कार के लिए पृूर्वे के ढ्वाले के दब्द या दाब्दों के पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग होता है । शभ्रत इस प्रकार के दाब्द का श्रथे गीत के पूर्व के द्वालों से संम्बन्धित होता है । उदाहरण के लिए श्रसत दाब्द में भ्रथें संख्या ७ दात्रु दुदइमन दिया हुआ है श्र भ्रथे की पुष्टि के लिए सुजा हरो झ्रसतां साले हाले मन मांनिंए हुए उदाहरण दिया हुभ्रा है । यहां यह भ्रसतां दब्द इस गीत के पूवे के द्वाले दोखियां तणी घणी घर दाबे फाबे जुध -जुघ




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