सूरज प्रकाश पार्ट II | Suraj Prakash Part-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19.56 MB
कुल पष्ठ :
436
श्रेणी :
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No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दे व कह,
_ - अपनी ' आ्रोरबढ़ती हुई सुन:कर सुजफ्फरखाँ. बिना मुकाबला :किये ही' अपनी: सेना+
,:. सहित. भाग गया। यह * डुभरटु,ं हू फनिकीश सर, रद
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महाराजकुमार भ्रभंयसिंहने-नारनौल तथां : दिल्ली व. झ्रांगरेंकें श्रासंपासके
-.... प्रदेशको' लूटंनां शुरू करे दियां श्र दाहजहाँपुरं तक पहुँच: गये । यहाँका फौज-
_ दार भी इनके भ्रागे नहीं टिक सका और उन्होंने बाहजहाँपुरको लूट कर भर्मी भुत
' कर दिया । महारोजकुमार: श्रभयर्सिहका आतंक'चारों शोर फैल गया श्रौर दिल्ली में
..... खलंबली मंच गई । इस समय महाराजकुमारका. 'घौकठसिह' नाम पड़ा । अभय-
:*..' सिंहजी' विभिन्न, प्रकारकी लूंटकी वस्तुग्रोंके साथ विपुल घन-राशि 'लेकरः वापिस
लौटे ।: महाराजा * श्रजीतसिंहः पुत्रके. इस रणकौद्ल श्रौर- प्रतापकों देख कर
. बहुत प्रसन्न हुए :्रौर उनका. स्वागत्त किया । श्रब उनको यह. विद्वास हो गया
कि मेरें-बाद मेरा: पुत्र भी: राठौड़ोंकी: शानको: रखनेमें समथे होगा ।
उधर .वादशाहने घबरा कर एक दरबार किया श्ौर उसमें सब राजाश्रों-
बाबोंकीं. संम्मत्ति. लेंकर महाराजा श्रजीतरसिहके पास नाहरखाँको अपना संदेंद
' . लेकर भेजा । नाहरखाँ महाराजाके पास पहुँचा किन्तु उसंके श्रचुचित व्यवहारके
- कारण वह मारा गया ।
_ जब. बादशाहने यह खबर सुनी तो वह बहुत घबराया श्र एक बड़ी सेना
: देकर शरफुद्दौला इरादतमंदखांको श्रौर हैदरकुलीको भेजा । इंसः विशाल दलके
.« साथ.आमेर नरेश जयसिंह, मुहम्मदखाँ बंगस:्रादि भी श्रपनी-श्रपनी सेनाएँ लेकर
. . महारांजोकें विरुद्ध झायें। इस:प्र कार शाही: दलको -्राता देख महा राजा झ्जीतंसिंहने
... नीमाज ठाकुर ऊदावत वीर श्रमरसिंहको अजमेरके किलेकी रक्षाका भार सौंप
कर स्वयं मारवाड़ .जोधेपुरकी :रक्षाथे प्रा गये । शाहीं दलने.भ्जमेरके किलेको
घेर लिया'। इस अवसर पर नीमाज. ठाकुर ऊदावत अभमरसिंहने बड़ी वीरता
.: दिखाई कुछ : दिन युद्ध होनेके परचात् श्रामेर' सरेश जयसिंहने संधि: करवा दी
_ और अजमेर पर बादशाहका अधिकार हो गया । इस संघिमें महाराजकुमार
'-अभयसिंहकीं : बादशाहके: दरवारसें दिल्ली जाना: तय. हुमा ।
; .' बादशाह . मुहम्मदज्ाहनें 'महाराजकुमार श्रभयर्सिहके दिल्लीं - पहुँचने पर
_ 'उनका 'बहुत आ्रादर-सत्कार किया शऔर उन्हें कई बहुमूल्य उपहार भेंट किये ।
दिल्लीमें रहते हुए इन्हीं दिनों एक समंयं महाराजकुमार ' अभयंसिंह बादशाह
मुहम्मदश्ाहके - दरबारमें गये और निंभेंय होकर भ्रांगे बढ़ने लगे । जब वे बाद-
_.दयाहके बिल्कुल निकट पहुँचे तो. वहाँकेः एक श्रमी रने उन्हें रोक दिया । महाराज-
कुमारने तुरन्त ही अत्यन्त -क्रोघित होकर कटार निकाल लिया । बादशाह
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