रघु वंश | Raghu Vansh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.72 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कालिदास का समय । ११
थ . विद्यमान न था ? सम्भव है कि कालिदास के: समय में रहा दो श्ौर
. पीछे से नष्ट हेगया: हो । कुछ भी है, चैटर्ली महाशय.की सब से नवीन
« _ श्ार .मनारखक कर्पना यही है । आपकी राय. सें रघुवंश सार कुमार-
_ संम्भव ५८७ इसवी के पदले के नहीं ।
चेटर्जी मद्दोदय ने श्रपने मत को श्रार भी कई चातों के धार पर निशिचत
है किया. है । “कालिदास के का्व्यों में ज्योतिपशास्त्र-सम्बन्धिनी वातां के जो
का उल्लेख हैं उनसे भी आपने घापसे सत की पुष्टि की हैं । कविकुशरुरु शेष थे
“अथवा यों कहना चाहिए कि उनके प्रन्थों में शिवोपासनायोतक पद्य हैं ।
“ऐतिहासिक खाजों से श्ापने यह सिद्ध किया है कि इस उपासना का प्राचल्य,
: . वाद्ध मत्त के हांस होने पर, छठी सदी में ही हुआ था। यह वात भी
. आपने अपने मत को पुप्ट करने वाली समझा है । श्रापकी सम्मति है कि
*-. रघु का दिग्विजय काल्पलिक है । यथार्थ में रघु सम्वन्धिनी सारी वाते
:.. यंशोधर्स्मों विक्रमादिय से ही सम्बन्ध रखती हैं । रघुबंश के :--
(9 3 प्रहापसास्य सानाश्च युगपदू व्यानशे दिशः ।
(२ लता अतस्थ कावेरी भास्वानिव रघुदि शब् ॥
(३) सदस्रगुणमुग्दष्ट पाद्स हि रते रवि !
_'. (४) मत्त भरदनात्कीश व्यक्तविक्रमलफणमू ॥
इसादि छोर भी कितने दी इलाकों में जा रवि,” 'भाजु' शार “भास्वान'
: “.. श्रादि शब्द घाये हैं उनसे आपने विक्रमादिय के “श्रादिय” का झर्थ लिया है
+. यार, जहाँ 'विक्रम' शरीर “प्रताप? आदि शब्द आये हैं वहाँ उनसे “विक्रम”
.. .का |. इस तरह झापने सिद्ध किया है कि यशोधर्स्मा विक्रमादिय ही को
' . लफ्य करके कालिदास ने इन श्लिप्ट इलाकों की रचना की है | अतएव वे
_ उसी के संमय में थे । उस ज़माने का इतिहास श्रार कालिदास के श्रन्थों
'... ,की.्न्तवंत्ती विशेषताये' इस मत को पुष्ट करती हैं । यही चैटर्जी मद्दाशय
: की. गवेषणा का सारांश है । इन विद्वानों की राय में विक्रमादित्य कोई
दे नाम विशेष नहीं, वह एक उपाधिमात्र थी ।
_-. < अशघाप के .घुद्धचरित .ग्रार कालिदास के काव्यों में जो समानता पाई
... “जाती है उसवो विपय में चैटर्जी मददाशय का मत है कि. दानों कवियों की
शक विचार लड़ गये हैं । झश्धघाष ने कालिदास के काव्यों को देखने को ्नन्तर
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