भगवद गीता का योग | Bhagwad Gita Ka Yog

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कृष्ण प्रेम - Krishn Prem

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जगदीश नौटियाल - Jagdish Nautiyal

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सतीश दत्त पांडेय - Satish Datt Panday

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रष्स्तातव ला पाश्चात्य देशों में भी आजकल भगवद्‌गीता का परिचय कराने की बहुत कम आवशइ्यकता है । ससार का एक महान्‌ आध्यात्मिक ग्रंथ मानकर इसका समसादर करने वाले वहुत हैं और इसे अपने आंतरिक जीवन की मार्गेदर्शिका बनाने वाले भी कम नही है । भारत मे इसकी लोकप्रियता के बारे मे तो कुछ कहने की आवश्यकता ही नही है । यद्यपि इसके लेखक अज्ञात है (क्योकि इस परम्परागत मत को मानकर चलना कठिन ही है कि गीता कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में ऐतिहा- सिक कृष्ण द्वारा कही गई थी) फिर भी हिन्दुओ के सब सम्प्रदाय व मत इसके प्रति श्रद्धालु है और यह वेदांत के तीन आधार स्तंभों मे से एक है--अन्य दो स्तंभ है उपनिपद्‌ और ब्रह्म सूत्र । जिन-जिन धर्माचार्यों ने अपनी शिक्षा को वेदांत पर आधारित बताना चाहा उन्होने गीता पर टीका लिखकर यह सिद्ध करना भावश्यक समभा कि उनके विचारों का गीता से समर्थन होता है । इसके परिणामस्वरूप विभिन्‍न दृष्टिकोणो से की गई टीकाएं देखने मे भाती हैं-- दैतवादी व अद्वतवादी सर्वेशवरवादी और ईश्वरवादी । कर्म ज्ञान या वैयक्तिक ईदवर मे आस्था रखने वाले सबके सब अपने सिद्धांत तत्त्व गीता मे ढूढ निकालते है । यद्यपि ऐसी व्यापक अपील गीता की सार्वंभौमता का प्रमाण है तथापि ऐसे आधिकारिक पद की यह खराबी भी रही है कि विभिन्‍न टीकाकारों ने अक्सर पाठ के वास्तविक तात्पयं को जानने मे कम और अपने मतलब की वात कहने या अपने प्रतिद्वन्द्वियों का प्रतिरोध करने मे अधिक दाक्ति लगाई है । असाध्य रूप से वाह्यात्मक विचारप्रणाली से ग्रस्त पाइचात्य विद्वानों के ऐसे ही भिन्न-भिन्न मतो के बारे मे हम कुछ नहीं कहना चाहते । गाबे (0270 हे के अनुसार गीता सांख्य योग की पाठ्य पुस्तक है जिस पर पहले कृष्ण और फिर किसी वेदांती ने अति लेखन द्वारा अपनी छाप लगा दी । हॉपकिन्स ( प०ा5) ने इसे कृष्ण सम्प्रदाय के हित में आमग्रहपूर्वक लिखा गया एक वैष्णव काव्य माना । लगभग सभी पाइचात्य विद्वानों को यह भी ऐतराज़ है कि गीता मे इनके




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