श्री पांडव पुराण | Shri Pandav Puran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पांडव पुराण | ६ चत्द्रपा ७ सूरज ८ युगल सछली € कलश १० तालाब ११ सदर १२ सिंहासन १३ व्योमसयान (देवताश्रोंका विमान) १४ भूषिगह (धररोन्द्रसा विसान) १४ रत्तराशि १६ शुद्ध अग्नि-शिखा । प्रात ःकालीन क्रियाओंसे निवृत्त होकर महीरानीने देखे हुए सोलह स्वप्तोंका फल महाराज सिद्धाथंसे पूछा श्रौर उन्होंने उन स्वप्लॉंका फल कहकर रानीकों संतुष्ट किया 1 इसी समय कोमलांगी गजगासिनी सुलक्षणणा रानी न्रिशलादेवीने स्वर्गके पुष्पोत्तर विमानसे चयकर आये हुए पुण्यशाली देवको अपने गर्भ-कसलसें धारण किया । यह दिन आषाढ़ सुदी ६ और हस्त नक्षत्र था । इस दिन प्रभुका गर्थ- कल्याणक सनानेके लिए स्वगंसे इन्द्र श्रौर देवतागरण मय परिवारके गाजे-बाजों सहित श्रपने-अपने वाहुनोंपर चढ़कर कुण्डनपुर श्राये और उन्होंने वहां भक्ति- भावसे खूब आनन्दपूर्वेंक सगवानका गर्भोत्सव सनाया तथा भगवासकी साताकी भक्ति-भावसे पूजाकी । माताकों किसी प्रकारका गर्भ-सम्बन्धी कष्ट नहीं हुमा देवियां नानाप्रकारसे माताकी सेवा करने लगीं । धीरे-धीरे जब गर्थको दित पूरे हुए तब चंत्र सुदी तेरसके दिन न्रिशलादेवीने जगद्ंदा संगबान चीरप्रशुको जन्स दिया जिसप्रकार कि पूर्व दिशा सूर्यको जत्म देती है भगवासके जन्स होनेसे द्ों दिशायें उज्ज्वल होगई सारे संसारमें आनन्द-संगल छा गया । जिन नरवों में नारकियोंको सदा ही सार-काट लगी रहता है उनको थी क्षणिक सुख मिला । चोदशके दिन बड़ी भारी विभूतिके साथ इन्द्र मय अपने परिवारकों ऐरावत हाथीपर चढ़कर स्वर्गसे भगवासका जन्मकल्याणक सना ने के लिए कुंडतपुर आये श्रौर चहांसे भगवानकों सुमेरु पर्वतपर गाजे-बाजेके साथ लें गए। समेस पर उर्होंने भग चावका बहुत ठाठ-बाटके साथ शीर समुद्रके जलसे दे एक आठ कलशाओं ह्वारा भगवानका महाशिषेक किया श्रौर कर्म शत्नश्रोपर लाभ करनेवाले भगवान चद्ध सान सास प्रगट किया और सगवानकों वस्त्राभूषण पहुचाये । ...... पीस वर्षकी अवस्था तक तो शगवान गृहस्थी (घर नें) रहे बाद किसी नराग्यके कारणकों पाकर संसारसे विरक्‍त होगये श्रौर सब फट्म्चको ऐसा दरशाया कि ये भोग विनश्वर हूँ 1 पर्चेत हुजार विजय स्वगॉप




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