पाक रत्नाकर | Pak-ratnakar

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Pak-ratnakar by राजेश दीक्षित - Rajesh Dixitरुकिमणिदेवी भार्गव -Rukimanidevi Bhargav

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रुकिमणिदेवी भार्गव -Rukimanidevi Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आपका भोजन और उसकी आवश्यकता भोजन फो आवश्यकता सिद्धानों ने मनुप्य के शरीर की स्टीम इंजन से चुलना की हूं । जिस प्रकार इंजन को कोयले भर पानी की आवश्यकता होती हूँ उसी पार मनुष्य के शरीर के लिए भोजन आवष्यक है । दोनों को ही भोजन के साथ सम्मिलित होकर उससे गविति उत्पन्न करने के लिए भॉक्सीजन चाहिये। दोनों में ऑक्सीजन की प्रिया से उप्णता पैदा होती हैं। इंजन से यह उप्गता भाप बनाती हूँ जिसकी धक्ति से पहिये घूमते है । घरीर से काम करने की गनित पैदा होतीं है जो मास-पेथियों में गति उत्पन्न करती तथा दूसरी शियाओ में काम आती हूं । दोनों में ही निकृष्ट पदार्थ पैदा होते हैं जो वाहुर निकाल दिये जाते है । जिस प्रकार इजन मे राख शेप रह जाती हैं उसी प्रकार शरीर में भोजन के कुछ भाग शेप रह जाते हूं जो किसी काम में नही भातें । इस प्रकार बिना कोयले-पानी के न तो इजन ही चल सकता हैँ और न मनुष्य का णरीर ही क्योकि मनुष्य दिन-रात परिश्रम करता है उससे उसके शरीर के भाग घिसते हूं। यहाँ तक कि जव वह एक वार हाथ उठाता हैं तब भी उसके शरीर का थोडा-सा अश कम हो जाता हूँ । इसी प्रकार इस कमी को पूरा करने के लिए भोजन की आवद्यकता पड़ती हू । यह भोजन ही शरीर के अगो में दवा का काम करता है और उनको पुष्ट बनाता है । मानव दारीर एक अदृभुत यन्त्र के समान है जो गर्मी तथा दाक्ति उत्पन्न करता हैँ। यन्त्र अपनी मरम्मत अपने आप नहीं कर सकता परन्तु शरीर अपनी मरम्मत अपने आप कर लेता है। यह जीवन भर हर समय काम करता रहता है। शरीर के अन्दर वहुत-सी ऐसी क्रियाएँ होती रहती है जिनका हमें ज्ञान तक नहीं हो पाता । बाहरी क्रियाओं में हमारी समस्त ऐच्छिक न्रियाएँ सम्मिलित है-जैसे खड़ा होना चलना दौड़ना और वातें करना आदि । इन समस्त क्रियाओ के लिए ही शरीर को भोजन की आवश्यकंता होती है । जीवन के कार्यों में शरीर के तन्तु तथा सेल निरन्तर टूटते तथा नष्ट होते रहते




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