प्राचीन राजस्थानी गीत | Pracheen Rajasthani Geet
श्रेणी : काव्य / Poetry, भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.32 MB
कुल पष्ठ :
258
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११)
समुद्र पूछता हि कि हे गंगा ! श्याम जलन में लाल रंग झेसे आा
गया ? गंगा उत्तर देती दे- नर केसरी पुत्र शक्तिसिह ने शाही सेना
विन करंदी है; अतः उसके रक्त प्रवाह से हालिसा शा राई है ॥
गंगा की यह उक्ति सुन समुद्र प्रसन्न हुआ । कवि. कहता है. कि
हिन्दुओं के स्वासी ने सुगक्तों पर प्रवल शस्त्र प्रहार किया है: उससे
यमुना का नीर रक्त रंजित हो गया दै ॥।
इस प्रकार के अनेक गीतों से राजस्थानी साहित्य भरा पड़ा है।
इन गीतों को पढ़ने से राजस्थानी साहित्य की विशेषता और उत्कृ्रता
का परिचय मिल जाता है! इनमें वीरों की वीरतापू्ण घटनाएं;
चत्राखियों के सतीत्व की अमर गाथाएँ और उदाएता की मर
भावनाएं भरी हुई हैं । यहाँ हमने केवल वीर रस से सम्बन्धित गीत
ही उदाहरणा्थ दिये हैं क्योंकि सभी प्रकार के गीतों से पुस्तक का
कलेवर बढ़ जाता है |
इस तरह के गीतों की परम्पण आज तक चली आ रही है ।
छंग्रे जो की गुलामी से मुक्ति प्राप्त करने के लिये जत्र समस्त देश छूट-
पटा रहा था, तब राजस्थानी कवि मौन केसे रद सकता था ? उसने भी
देश की स्वाधीनता के गीत गाये और अंग्रेजों के अत्याचारों के विरूद्ध
आवाज घुलन्द की | ऐसे गीत राजत्थान में चहुत रचे गये; कुछ गीत
प्रस्तुत पुस्तक में दिये गये हैं ।
प्राचीन राजस्थानी के इस गीत संप्रह से हिन्दी सादित्यकारों कों
डिंगल्न गीतों का परिचय प्राप्त करने सें कुछ सहायता अवश्य सिसेगी,
ऐसी आशा है और तभी हम अपना प्रयत्न सफल मानेंगे ।
इस संग्रह. के सम्पादन सें प्रमुख योग साहित्य-संस्थान के संग्राहक
और इसके सदद-सम्पादक श्री सांबिलदानजी शिया का रहा है ।
मम
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