जाति अन्वेषण भाग 1 | Jaati anveshn Bhag 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.42 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( 5४ )
पन्नों का उत्तर देना मंडल के नियम विरुद्ध जान फर घन्द रचखा घाक़ी
सब के उत्तर देते रहे जिस से ता० ८ जनपरी सर १६१४ के छाय्य
मित्र में नोरिस छपने से घाज तारीख १७ मार्च सन् १६१४ तक के
यानी २ मास थे ६ दिन के थोड़े समय में हमारे 11606 068]061017
78856 उत्तर देने के रजिस्टर में पनोत्तरों की संख्या २४६ होगयी
ब्यतपव ऐसा करने से पत्रों की श्ामद प्रति दिन शोर भी बढ़ने लगी
चदुत से सज्जनों ने हमें यह भी लिखा कि ''यदि श्माज्ञा दो तो हम '
सेवा में ध्याकर झाप के अ्रन्थ को देखें? इस घाज्ञा का भी पालन दम
ने कतिपय सज्नों के साथ किया, वे लोग घाये सम्पूर्ण देख शाल
कर के हमारे चड़े रुतश डुये, परन्तु ऐसा करने से प्रायः दिन ९ सर
हमारा समय नए होने लगा शोर बर्थ फे काय्ये में चाघा पहुंचने
लगी तब घ्ाने वाले मनुष्यों को भी रोक देसे फा दर्मे प्रयन्ध करना पड़ा ।
घ्पतप्व पठित समाज को यह निश्चय दोजाय कि दमने देश हित
के लिये क्या क्या उद्योग किये हैं तथा कहां २ व क्या कया श्मन्वेषण
किया है इस लिये नमूने मात्र को सापा भापी पाठकों वी तृप्ति के लिये
यह पक छोटी सी पुस्तक सेवा में भेट की . है जिस से उपरोक्त
प्रकार के सस्पूर्ण प्रश्नों के उत्तर शले प्रकार से मिल जायेंगे ।
इस के ध्रतिरित्त इस पुस्तक के छुपाने का सुख्य फारण यह भी दें.
पि मंडन में सिन्व २. स्थानों के मद्दामद्दोपाध्याय, विधावाचर्पति;,
भ्रोचिय, ध्पाचार्य्य, सस्ठूत घोफेसस, नेय्यायिक, वेदान्ताचार्य, प्रधाना-
ध्यायक, ज्योतिर्विंदु, व्याकरणाचारय्य, न्यायरल, _ घर्मेशास्त्री तथा
घ्यन्य धन्य शास्त्री गण व पोराणिक विद्वान जो संडल की “धर्म व्यव-
: स्था सभा के सभालद इये हैं, उन की यह श्याज्ञा हुयी है कि “शाप के
लिखित मद्दान् ग्रन्थ का निर्णय तो बरसों में सी न दो सकेगा ध्यौर उसके
प्रत्येक श्रक्र को पढ़ना घ देखना भी इस लोगों के लिये ध्यसस्भव
होगा; ातपव जिन २ संकेतों पर संम्मतियें लेनी हैं उन ए0ंए५85
. संकेतों को बहुत दही सरल भाषा में खूज्म रीति से छपना दीजिये जिस
से झवकाद में सब छुछ देख भा व विचार कर निश्नय कर ल्तिया
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