मोहिनी विद्या | Mohini Vidya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ू मोहिनी विद्या विशेष क्षमतावान आदमी को उतनी रुकावट नहीं हो सकती । आदमी दृढ़ इच्छा रहने पर दोनो मे पूरी शक्ति उपाज॑न कर सकता है । डाक्टर मेसमर साहब का लक्ष रोग छारोग्य करने पर ही था। वद्द संसार का उपकार करना ही अपना कत्तंव्य समभते थे । उनको अपनी करामात दिखाकर आसपास या दूसरे लोगों मे वाहदवाही बटोरना नही था। इस विद्या को सीखकर कुछ मान मथ्यांदा अथवा घन लाभ का श्रलोभन उचित नहीं है न ऐसी रुचि रखनेवाले सदा मान मय्यांदा वा घन सम्पति पा सकते है। जो ऐसा चाहते हैं बह तो इस विद्या के सीखने की योग्यता ही नही रखते लेकिन जो और जोड़ तोड़ या दृढ़ आस्था आदि शुणों से कभी इस विद्या मे कुछ दखल पा जाते हैं वह झागे चलकर अपनी प्रभुता खो बेठते हैं। यहाँ हम प्रसंगवश एक घटना का उल्लेख कर देना चाहते हैं । -- दानापुर ( पटना ) सें गड्ातट पर जहाँ खेयाघाट है उसी घाट पर एक नाव यात्रियों को लेकर पार जा रही थी नाव पर वृद्ध युवा सब सवार थे । काश में सन्नाटा था। हवा सानों नहीं चल रही थी । चारो ओर से गम हवा का अलुभव हो रहा था । लोगों को पसीना भी चल रहां था। ढॉड़ खेने वालों के कपड़े पसीने से बिलकुल भींग गये थे आकाश मे मटमैले बादल उमड़ रहे थे । देखते ही देखते बढ़े जोर की हवा चली भयछुर बवण्डर ाया। यात्रियों मे एक ख्री गोद में बरस दिन का बच्चा लिंये स्तन पान करा रही थी । उसकी दशा देख कर लोगों को तरस आने लगा। प्रचण्ड हवा का ऐसा प्रबल बेग आया कि नाव पर के सवार सावन के दुन्दाबनी सूखे का अनुभव करने लगे। नाव हवा के भोंके से बहुत नीचे का आने लगी पानी के इलोरे से यात्रियो की देह ही नद्दीं भीग गयी बल्कि सबके प्रेट के चावल




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