आर्ष विज्ञान | Arsha Vigyan
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10.19 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वमी सत्यप्रकाश सरस्वती - Swami Satyaprakash Saraswati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9 जगत संतत परिवर्तनशील है और यह परिवर्तनशीलता इसकी वास्तविकता है । थोड़ा सा विनाश पड़ोस में ही सृजन को लाता है। इश्र तरह विनाश निर्माण की तरह ही उदार है । मृत्यु और क्षय से जन्म और ब्रद्धि होती है और यह चक्र चलता रहता है । संसार पूर्ण मितव्यधिता के नियम पर आधारित है इसका एक ग्राम भी फिजूल वहीं जाता है और इस प्रकार प्रकृति में काबंन नाइट्रोजन और फास्फोरस के चक्र चलते रहते हैं । इन चक़ों के नियम से तथा मितब्ययिता के नियम के अन्तगेंत यदि एक स्थान पर ऊर्जा का विनाश होता है तो दूसरे स्थान में समान भार की ऊर्जा प्रकट होती है । यहाँ पर थोड़ा सा लाभ वहाँ थोड़ी सी हानि उत्पन्न करता है। इन चक़ों के नियम तथा मितव्ययिता ने हमें संरक्षण के तीन भाघारभूत नियम प्रदान किये हैं--द्रव्यमान का संरक्षण ऊर्जा का संरक्षण तथा संवेग का संरक्षण । पूर्ण मितव्ययिता पदाथे की अविनाशिता का प्रतिफल है (यहाँ पदाथं किसी पदाथं विशेष के लिए नहीं बल्कि व्यापक रूप में है) । पुन हमारी वेज्ञानिक खोजें इस स्पष्ट भाव पर आधारित हैं कि मनुष्य को प्रकृति के रहस्यों को खोज निकालने की क्षमता मिलो है । वह जितना ही इन रहस्यों की खोज करेगा उतना ही पावेगा कि अनखोजा भाग अधिक है। इस तरह हमारी बैज्ञानिक खोज का अन्त नहीं है । विद्या की देवी (सरस्वती) उन्हीं के समक्ष प्रकट होती है जो प्रेम आदर तथा श्रद्धा के साथ उसका वरण करते हैं । बह अपना सौन्दयं क्रमश अपने वरणकर्ता के समक्ष उद्घाटित करती है । बह चिर नवीन मोहक है उसकी सुन्दरता हमेशा भनुप्राणित करती है । यह सुन्दरता न नष्ट होती है ने मुरझाती है न ही मरती है। विज्ञान-बाला का ऐसा है यौवन भर ऐसी है विद्या की देवी (सरस्वती) । _ मैं यह पूर्ण दावे के साथ कह सकता हें कि जो बात आपको संतुष्ट नहीं कर सके यदि आप उस पर विश्वास करते हैं तो इसका अर्थ है कि आपने तक करने के सर्वोपरि गुण का परित्याग कर दिया है जो मनुष्य को प्रदान की गई एकमात्र मशाल है । वैज्ञानिक जन नास्तिक नहीं होते । वैज्ञानिक आास्तिकता शाश्वत नियम की इस देवी सार्वेभौसिकतां को अंगीकार करना है तथा इसके प्रति आदर-भाव रखना है । थी यदि एक रसायनज्ञ या भौतिकीविद के रूप में मैं यह नहीं समझता कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में किये गये प्रयोग काम्पाला . नेरोबी लन्दन या न्यूयाकं में कोई भयथें नहीं रखते हैं तो में प्रोफेसर पद स्वीकार नहीं करता । मेरे
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