चुनी हुई कहानियां | Chuni Hui Kahaniyan

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Chuni Hui Kahaniyan by मक्सिम गोर्की - maxim gorkiमदनलाल 'मधु' - Madanlal 'Madhu'

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मदनलाल 'मधु' - Madanlal 'Madhu'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिर रहे हो, वैसे हज़ार थैलों में भी न समा पाये। सरा नाम तो लो किसी ऐसी जगह का, जो मेंने न देखी हो? नहीं, तुम एक भी ऐसी जगह का नाम नहीं ले सकते। तुमने तो नाम भी नहीं सुने होंगे उन जगहों के जहां में हो श्राया हूं। बस, ऐसे ही जीना चाहिये - चलते जाश्नो , चलते जागो किसी भी जगह ज्यादा न टिको ,- कोई टिके भी क्यों ? जिस प्रकार दिन श्रौर रात एक दूसरे का पीछा करते हुए धरती का चक्कर लगाते रहते हैं, ठोक वैसे ही, श्रगर तुम जीवन से ऊबना नहीं चाहते, तो जीवन के बारे में सोचने से दर भागते रहो। जीवन के बारे में जैसे ही सोचने लगते हैं, वैसे हो उसका उल्लास वहीं समाप्त हो जाता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुम्रा था। ग्रे हां! सच, ऐसा हो हुआ था, मेरे सुरमा। यह उन दिनों को वात है, जब में गालोसिया की जेल में था। “किसलिये ज़िन्दा हूं में इस दुनिया में ?' उदास होकर में सोचता । जेल में बड़ी ऊब महसूस होती है, मेरे सुरमा , श्रोह , कितनी ऊब महसुस होती है! जब में खिड़की से बाहर खेतों को श्रोर देखता, तो मेरा मन वुरी तरह उदास हो उठता, ऐसे लगता कि मानो उदासी ने उसे किसी संडसी से दबोच लिया हो। कौन वता सकता है कि श्राख़िर श्रादमी किसलिये जीता है? कोई नहीं बता सकता , मेरे सुरमा ! श्रौर श्रपने श्रापसे यह पूछना नहीं चाहिये। जीते जात्रो , श्रौर बस ! घूमो-फिरो श्रौर जो कुछ देखा जा सकता है, देखो। तब उदासी तुम पर कभी हावी नहीं हो सकेगी । एक बार तो श्रपनी पेटी का फंदा गले में डालकर में झूल ही गया होता ! “ग्रे, हां! एक श्रादमी से मेरी श्रच्छी बातचीत हुई। बड़ा धोर- गम्भीर था , कोई तुम्हारा ही रूसी । बोला - ' जैसे मन में श्राये , वैसे नहीं , बल्कि जंसे ख़ुदा की किताब में लिखा है, वैसे जीना चाहिये। ख़ूदा को बात मानोगे, तो वह तुम्हारी हर मुराद पूरी करेगा।' वह ख़द चियड़े पहने था। मेंने कहा - खुदा से एक नया सुट क्यों नहीं मांग लेते ? ' इसपर वह बुरी तरह बिगड़ खड़ा हुभ्रा श्रौर गालियां देते हुए मुझे भगा दिया। लेकिन कुछ ही क्षण पहले , वह उपदेश झाड़ रहा था कि लोगों से प्रेम करना चाहिये, उन्हें क्षमा करना चाहिये। श्रगर मेने उसका दिल दुखा ही दिया था, तो कर देता मुझे माफ़। ऐसे होते हैं तुम्हारे थे उपदेशक ! सीख देते हैं कि कम खाश्रो श्रौर ख़ुद दिन में दस वार खाते हूं।” उसने श्राग में थूका श्रौर चुप हो गया , फिर से पाइप सुलगाने लगा । १५




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